कवितालयबद्ध कविता
*_मेरे मन मे डर नाम का एक शैतान बैठा रखा है ..._*
अपनो ने ही मेरे दुनिया मे अपना खौफ बढ़ा रखा है ...
अपनी चालाकियों से उन्होंने मुझे कदमों तले दबा रखा है ...
मैं अपनो को खो न दु , इसी बात ने दिल मे कोना बना रखा है ...
*मेरे मन मे डर नाम का एक शैतान बैठा रखा है ...*
मुझे डर नही लगता रात के उन काले अंधेरो से ...
मुझे डर लगता है दिल और दिमाग के मैले लोगो से ...
ऐसे कुछ पापियों ने मेरे जीवन मे अपना हिस्सा जमा रखा है ...
*मेरे मन मे डर नाम का एक शैतान बैठा रखा है ...*
मुझे डर नही लगता इन टूटी फूटी सड़को पर चलने से ...
मुझे डर लगता है खुली सड़क पर घूमने वाले हैवानों से ...
हर जगह कुछ दरिंदों ने अपना सिक्का जमा रखा है ...
*मेरे मन मे डर नाम का एक शैतान बैठा रखा है ...*
यह शैतान मन मे कुछ इस तरह बैठा है ...
लड़कियों को ना हँसने देता हैं ना रोने देता है ...
ऐसे हालातों को सुन देख के मेरे सीने का खून पसीज रखा है ...
*मेरे मन मे डर नाम का एक शैतान बैठा रखा है ...*
मुझे डर नही लगता कि लोग क्या कहेंगे ...
कुछ तो लोग कहेंगे लोगों का काम है कहना ...
मेरे अपनों ने अक्सर झूठ पर भी भरोसा कर रखा है ...
*मेरे मन मे डर नाम का एक शैतान बैठा रखा है ...*
मैं तो खुद से भी आज के समय मे डरने लगी हूँ ...
मेरे कर्म वचन वाणी से कभी दिल न दुःखे किसी का ...
कलयुग में हर किसी के जेहन में एक शैतान बना रखा है ...
*मेरे मन मे डर नाम का एक शैतान बैठा रखा है ...*
ममता गुप्ता
अलवर (राजस्थान)
आप अलवर से हैं अच्छा लगा जानकर बहुत सुंदर लिखा है आपने।
जी धन्यवाद