कवितालयबद्ध कविता
इतना हँसें कि
रोने का वक्त ना मिले
ख्वाहिशों का गला घोटती
सख्तियाँ, पाबंदियाँ
कर ले चाहे कितनी भी
दिल की नजरबंदियाँ
होंठों पर आती हँसी को
उदासियों की सुइयों से
यूँ ना सिलें
इतना हँसें कि
रोने का वक्त ना मिले
हाँ, किसी को भी कभी
मुकम्मल जहाँ नहीं मिले
हम तो क्या हैं,
अपनी तो गिनती ही क्या है ?
उस आसमाँ को ये जमीं
और इस जमीन को
वो सब आसमान नहीं मिले
हाँ, वो आसमान
जिसका अस्तित्व
केवल शून्य है
फिर भी अपने-अपने नभ का
जो भी हासिल कर पाये हम
उन सबका भी तो
कुछ ना कुछ मूल्य है
आसमान क्या सिर्फ
हिमालय की चोटी पर छाया है
नहीं, नहीं हम सब पर भी
इसकी दुआ का साया है
हाँ, जिस जगह हम खडे़ हैं
धरती के उस टुकड़े का कण-कण
हम जिस समय चले हैं
कालचक का वो हर क्षण ही
अपना सरमाया है
भूत तो बस भूत-प्रेत सा
मुठ्ठी से फिसली रेत सा
फिर से हाथ नहीं आता
हमको सिर्फ जकड़ता है
और दूर से झाँकता,
ताकता सा वो कल
कल-पुर्जे सा का कैद कर
हमको सिर्फ रगड़ता है
आओ इसी आज को जी लें
बूँद-बूँद कर, घूँट-घूँट भर
जी भर इसी जाम को पी लें
इस धागे से खुशियों के
बिखरें-बिखरें से कुछ मोती
मन की कटी-फटी,
सिकुडी़ सी गुदडी़ में
टाँक लें
बस अपने ही आस-पास
यूँ ही कभी भी झाँक लें
हर पल तनाव के फंदे से
खुद को ना टाँग लें
खुशियाँ तो बस आस-पास ही
यहीं कहीं पर बिखरी हैं
अहसासों की नर्म धूप में
निखरी हैं
हाँ, हँसी के लिए हम
इतनी दूर तक क्यूँ भटकें
मृगतृष्णाओं के जालों में
नाहक क्यूँ अटकें
छोटी-छोटी खुशी समेटें
मन की गगरी में फेंटें
बस इनको ही
एक दूजे से
साझा कर लें
मुस्कानों से
इन फूलों को
ताजा कर लें
थोडी़ किसी से बाँट लें
थोडी़ किसी से माँग लें
हाँ, ये ही तो जिंदगी की
सबसे बडी़ जरूरत है
इस आईने से देखेंगे तो पायेंगे
जिंदगी बडी़ खूबसूरत है
अहसासों के परवाज़ से,
एक नये आगाज़ से
एक नये अंदाज़ से
आओ, इससे गले मिलें
और इतना हँसें कि
रोने का वक्त ना मिले
द्वारा : सुधीर अधीर