कवितालयबद्ध कविता
शिर्षक-मुफ़लिस
अमीरों के पैरों तले,कुचला गया मुफ़लिस
भूख लगी तो धोखा भी,खा गया मुफ़लिस
उसकी राह या परवाह,खुद उसने ही चुनी है
मौत की डगर चल कब्र में,समा गया मुफ़लिस
सपने नही अपने नही,कुछ भी नही जहा पर
सोचता रहा किस जगह,है आ गया मुफ़लिस
मरने के बाद हो कफ़न,या दफन की सरजमी
बड़ा नसीब वाला है,जो इसे पा गया मुफ़लिस
फिक्र और जिक्र में नही,लिख रहा है सुनो शिखर
बस देखकर तस्वीर को,खुद शर्मा गया मुफ़लिस
स्वरचित-संदीप शिखर मिश्रा। #वाराणसी(U. P)