कविताअतुकांत कविता
अपनों से दूर
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ये मत पूछो मैंने कितना दु:ख उठाया है |
अपने साँसों से दूर अपना घर बसाया है |
सुन नहीं पाता अपने दिल के धड़कनों को
ये आँखों में आँसू भर देते हैं
धूँधला सा संसार नजर आता है
ये पलकों को गिला कर देते हैं |
मजबूरियों ने रोक रखा है
कदम बिन बेड़ियों के बँधे हैं
ऐसा मत सोचो मेरी आँखें नहीं
आँखों के रहते हम अंधे हैं |
अपनों से दूर परायों की दुनियाँ है
यहाँ धन ही है आजादी
निर्धनता ही सबसे बड़ी हथकड़ी है |
अपनों से दूरी सबसे बड़ा दंड़ है
दर्द इससे बड़ा नहीं
जब हो जाता हृदय खंड खंड है |
कृष्ण तवक्या सिंह
19.09.2020