कहानीसंस्मरणहास्य व्यंग्यव्यंग्यप्रेरणादायक
शीर्षक: वो भारतीय अंग्रेज
एक बहुत ही मजेदार क्षणिक घटना का संस्मरण, आज अधरों पर मद्धिम मुस्कान संग मस्तिष्क पटल पर उभर आया!
वही आप से साँझा कर रही हूँ!
दो वर्ष पूर्व मेरे पुराने चलंत दूरभाष यन्त्र (मोबाइल) में हिंदी टंकण का कोई विकल्प नही था! अतः हिंदी भी अंग्रेजी में ही लिखनी पड़ती थी!
जिससे मै अपने भावों को अपनी रचनाओं में पूर्ण रूप से समाहित करने मे असफल अनुभव करती!
सत्य भी था हिन्दी की मिठास में डूबी रचनायें मात्र हिंदी में टंकण न होने के कारण नीरस सी ही प्रतीत हो रही थी!
अतएव मैंने नव चलंत दूरभाष यंत्र के लिऐ भाई से हठ करना प्रारम्भ कर दिया! और ये हठ पन्द्रह दिवस पश्चात सकारात्मक हो कर मूर्त रूप से मेरे हस्त में सुसज्जित था!
मतलब की भाई ने मुझे नव चलंत दूरभाष यंत्र दिला दिया!
मुझे अत्यधिक प्रसन्नता थी तथा वर्तमान में अपने समस्त साहित्यिक कार्य हिंदी में करने के लिए पूर्ण स्वतंत्र!
नव चलंत दूरभाष यंत्र संग लेखन कार्य की गति अब अपने वेग पर थी!
उस दिवस प्रभात बेला में संदेशवाहक (मेसेजर) पर एक संदेश के आने से उपजी ध्वनि ने मेरी निंद्रा को विराम देते हुऐ मस्तिष्क झंकृत किया!
तत्क्षण ही नेत्रों ने तीव्र गति से सजग हो कर चलंत दूरभाष यंत्र को निहारा ! अपनी अलसाई दृष्टि को सजगता से नियंत्रित कर, अपने दाएं हस्त से समीप रखें पाठन चौकी से, मैंने दूरभाष यंत्र को उठा कर सन्देश देखा!
संदेश अंग्रेजी टंकण में था!
जो कि किसी मुख-पुस्तक (फेसबुक) मित्र द्वारा भेजा गया था!
"गुड मॉर्निंग"
मैंने भी
"शुभप्रभात" लिख कर सन्देश भेज दिया!
तत्काल ही पुनः संदेशवाहक ध्वनि उभरी!
हिंदी दिवस की शुभकामनाएं...!
टंकण इस बार हिंदी में था!
आपको भी हिंदी दिवस की हार्दिक बधाई व शुभकामनाएं मोहोदय..!
मैंने तत्क्षण ही प्रतिउत्तर हिंदी टंकण में दिया!
पुनः संदेशवाहक की ध्वनि ने अचंभित किया!
"क्या बात है पूनम ! आज हिंदी दिवस है तो सारी वार्तालाप हिंदी में.!
उन मित्र के सन्देश में उपहास भरपूर मात्रा में छलक रहा था!
अब मित्र के प्रत्येक सन्देश हिंदी टंकण में थे!
परंतु मुझ पर और हिंदी पर मानो अपने उपहास की बौछार से सरावोर करते!
तुम्हारा हिंदी दिवस मनाने का क्या फायदा?
तुम और सब आज आज ही हिंदी में लिख कर कल पुनः अंग्रेजी का उपयोग करेंगे!
उन मित्र के इस संदेश से हृदय विचलित हो उठा!
खुद को संयमित कर तत्क्षण ही प्रतिउत्तर दिया!
मेरी छोडिये मोहोदय!
हिंदी तो हम जैसे साहित्यकारो की रक्त धमनियों में रक्त- प्रवाह करती है!
हमारे लिये प्रत्येक दिवस हिन्दी की मिठास से ओतप्रोत है!
ये हिन्दी दिवस तो केवल आप जैसे भारतीय अंग्रेजों हेतु विशेषतया निर्मित किया गया है!
.....ताकि आप हिंदी भूल न जायें!
मेरे इस प्रतिउत्तर के पश्चात उन सज्जन मित्र का कोई भी संदेश, सन्देश वाहक पर अवतरित नही हुआ!
आज फिर उस भारतीय अंग्रेज को मुख- पुस्तक पर खोजा!
हिंदी दिवस की शुभकामनाओं हेतु
वो तो नही मिले! परंतु उन के जैसे अन्य भारतीय अंग्रेज ने इस घटना को पुनः जीवित किया!
©️पूनम बागड़िया "पुनीत"
(नई दिल्ली)
स्वरचित मौलिक तथा अप्रकाशित ( सत्यघटना पर आधारित) रचना
अत्यंत सुन्दर.. एक वास्तविकता
जी... शुक्रिया सर...!🙏🏻
बहुत सुन्दर और मनोरंजक..! ??
सादर धन्यवाद सर जी..!