कहानीउपन्यास
मैच्युरिटी
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भाग (3 )
हारमोनियम जो अबतक मखमली कपड़े से ढँका था | बाहर निकाला गया और उसपर से कपड़ा हटाया गया | शायद जब से मूर्ति की शादी की बात चलने लगी थी तबसे उसे अपने धड़कनों की आवाज सुनने से अच्छा कुछ भी सुनना सोहाता न था | लगता है इधर महीनों बाद संगीत से उसका नाता जुड़ रहा था | जब सामने परीक्षक बैठा हो तो अच्छी से अच्छी तैयारी करने के वावजूद भी परीक्षार्थी के मन में घबराहट होने लगती है | मूर्ति का भी वही हाल था | फिर भी परीक्षा तो देनी ही थी | बचने का कोई उपाय न था | जब बचने का कोई मार्ग शेष न रह जाए तो व्यक्ति में न जाने कहाँ से साहस का संचार हो जाता है | कोई इसे दैवी कृपा कहे तो इसमें अतिश्योक्ति नहीं |
मूर्ति हारमोनियम के पास आकर बैठ गयी और गाने की तैयारी करने लगी | पहले उसने सरस्वती वंदना ही करना मुनासिब समझा | क्योंकि संगीत और काव्यगोष्ठियाें में यही परंपरा अबतक चलती आयी है |
स्वर नितांत मधुर थे और लय में भी कहीं उन्हें कोई कमी नजर नहीं आयी | मूर्ति को तो उन्होंने देखते ही बहू के रूप पसंद कर लिया था | उसपर यह स्वर लहरी सुनकर वे मुग्ध हुए जाते थे | एक दो और गीत के बाद कार्यक्रम का समापन करना ही उचित समझा गया ,क्योंकि रात ज्यादा हो गयी थी और शुभेन्दु बाबू को शादी से सम्बंधित और बातें भी करनी थी | उनके पास समय बहुत कम था | सुबह ही घर के लिए प्रस्थान करना था | मन तो उनका और भी संगीत सुनने का था पर इस समय मन पर काबू रखना ही उन्हें उचित लगा |
रात भर में ही वे सबकुछ तय कर लेना चाहते थे | सबके चले जाने के बाद उन्होंने तापस राय और पंण्डित जी जो अबतक अगुआ की भूमिका का बाखूबी निर्वाह कर रहे थे उन्हें बुलवाया गया | विवाह से सम्बंधित सारी बातें अभी तय करनी थी | उनकी कोई विशेष माँग नहीं थी और सबसे बड़ी भूमिका जो सभी अवरोधों को गिरा दे रही थी वह थी मूर्ति का सौन्दर्य जिसपर शुभेन्दु राय मुग्ध हो चुके थे और मन ही मन उसे अपनी बहू बनाने का ठान चुके थे | अब पैसे और गहने की बात में कुछ रखा न था | ये सब औपचारिकता मात्र ही रह गए थे | मूर्ति ने एक हद तक अपने सौन्दर्य और संगीत से इन अवरोधों को धराशायी कर दिया था |
आखिर फाल्गुन के महीने में लगन होना निश्चित हुआ | अभी सावन का महीना ही चल रहा था करीब छह महीने का समय था | लेकिन विवाह की तैयारी एक दो दिन में तो होती नहीं | पंडित जी ने पत्रा निकालकर फाल्गुन शुक्ल पक्ष पंचमी के दिन विवाह का शुभ मुहुर्त निकाला | जिसपर दोनों पक्ष राजी हो गए |
विवाह की तैयारियाँ दोनों तरफ ही होने लगी | और दोनों घरों के वातावरण में एक अजीब सा परिवर्तन दिखने लगा | दोनों पक्ष कभी अपने अपने किस किस रिश्तेदार को बुलाना है और कब बुलाना है कौन सामान कहाँ से और कब तक लाना है इसकी योजना बनाने लगे |सबके लिए समय अपनी गति से चलता था | लेकिन इन दो परिवारों के लिए समय जैसे लगता भागा जा रहा था | रोज रोज कुछ न कुछ तैयारी होने लगी | नहीं कुछ तो किसी दिन टोकरियाँ ही खरीद लाए तो किसी दिन बक्से खरीदे जाने लगे | घर की स्त्रियों ने सुनारों को बुलवाकर अपने गहने जो बक्से में रखे जाने के बावजूद भी मलिन हो गए थे उन्हें साफ कर उसपर पॉलिश मारने का ऑर्डर देने लगी |