कविताअतुकांत कविता
मातृभाषा
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हम सभी को अपनी भूमि और अपनी भाषा से प्यार है |
जो जितने गहरे उतरा ,किया उसने इसका उतना ही विस्तार है |
मत बनने दो भाषा को राजनीति का हथियार
इसकी कोमलता कायम रखने को गहरे उतरो यार
बिखर जाए ऐसी सुगंध चहुँ ओर ऐसा फूल खिलाओ
हर कोई जिसे अपनाना चाहे ऐसी छवि बनाओ
जगत के रहस्यों की खोज बने ,
हर दिल के अरमानों का ओज बने
कुछ गाओ ऐसे गीत ,जो हर जुबान पर लहराए
हर कोई जिसे अपनाना चाहे ,हर हृदय जो गाना चाहे
पाए जिससे वह आसमान में उड़ने का हौसला
अपनी रीढ पर खड़े होने का साहस चाहे
हम भर सके रस अपने शब्दों में
संचरित हो सकें हर नब्जों में
फिर कौन हमें रोक पाएगा ,आने से उनके लफ्जों में
दुनियाँ ये है दुनियाँ पल पल रूप बदलती है
समय के साथ जो चले वही नये मे ढ़लती है |
पत्थर पर लकीर बनती है ,स्याही हर युग में पानी से बनता है |
जो बहने और मिलने को आतुर होता है
वही इतिहास रच जाता है |
हर भाषा का मान करो ,
अपनी भाषा में योगदान करो |
दुनियाँ को कुछ दे सकने की क्षमता आ जाए
काम कुछ ऐसा महान करो |
अपनी मातृभाषा में ही हम स्वाभाविक हो सकते हैं
अपने भावों को अपने शब्दों में ही कह सकते हैं |
कृष्ण तवक्या सिंह
14.09.2020.