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Sahitya Arpan - Abasaheb Sarjerao
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Abasaheb Sarjerao

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  • कविताअन्य

    मन क्यों बहके रे बहके

    • Edited 3 years ago
    Read Now
    • 243
    • 4 Mins Read

    मन क्यों बहके रे बहके तेरी चाहत में ?
    मिले ख़ुशी तुझे देखे बगैर तेरी आहट से
    क्यों तेरा हर वक्त इंतजार रहता हैं ?
    तू आएगी जरुरी दीवाना दिल कहता हैं

    मेरे मन सुन ले पुकार उस भविष्य की जो
    हर वक्त वर्तमान
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    मन क्यों बहके रे बहके ,<span>अन्य</span>
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    Abasaheb Sarjerao

    Abasaheb Sarjerao 3 years ago

    thanks all

    Champa Yadav

    Champa Yadav 3 years ago

    बढ़िया...

    Ankita Bhargava

    Ankita Bhargava 3 years ago

    बढ़िया

    कविताअन्य

    सबकुछ तो तय हैं ..

    • Edited 3 years ago
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    • 197
    • 4 Mins Read

    सबकुछ तो तय हैं , फिर किस बात का भय हैं ?
    जन्म से लकीर खींची श्मशान तक
    रोटी से लेकर उस चाँद तक भागते हो
    आखिर इंसान तुम क्या चाहते हो ?

    खुद पे इतना घमडं हैं या किसी द्विधा में हो ?
    कहीं इंसान इंसानियत
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    सबकुछ तो तय हैं ..,<span>अन्य</span>
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    कविताछंद

    मैं समय हूँ ...

    • Edited 3 years ago
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    • 354
    • 9 Mins Read

    मैं समय हूँ,विशुध्द निरामय हूँ
    कल भी था और कल भी रहूँगा
    मेरी कीमत जो भी जानते हैं
    वही अपनी मंजिल पाते हैं

    मैं नहीं जानता आगे क्या होगा ?
    लेकिन क्या हुवा ?कैसे हुवा ,क्यों ?
    मुझ मे सबकुछ राज दफ़न
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    मैं समय हूँ ...,<span>छंद</span>
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    कविताअन्य

    दिप जैसे चमकते रहो तुम ...

    • Edited 3 years ago
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    • 134
    • 2 Mins Read

    दिप जैसे चमकते रहो तुम ...
    पावन चरणोपर लीन होना !
    वचनपूर्ती का ही आनंद लेना ...
    लीन होकर आशीर्वादीत रहो सदा !

    किंतु - परंतु से बाधीत ना हो तुम ...

    हाल -हवाल कभि न खोकर खुश रहेना !
    र्दिघ आयु तुम्हे मिले
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    दिप जैसे चमकते रहो तुम ...,<span>अन्य</span>
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