Login
Login
Login
Or
Create Account
l
Forgot Password?
Trending
Writers
Latest Posts
Competitions
Magazines
Start Writing
About Us
Terms and Condition
Privacy Policy
Help Videos
About Us
Terms and Condition
Privacy Policy
Searching
"-ए-हयात"
कविता
रहगुज़र से दूर ही रहा घर-बार मिरा
शाम ए हयात होने को आई
अच्छा-खासा वक़्त हमारा बशर जहाँ से गुज़र गया
तालीम-ए-हयात कभी मुक़म्मल नहीं होती
कोई और काम आ गया है
*रंग-ए-मौसम-ए-हयात*
*रंग-ए-मौसम-ए-हयात*
हयात में मिले हर फ़रेब से वाकिफ़ हूँ
एक और साल गया
सफ़र-ए-हयात में कांटों से भरा रहगुज़र आता है
ज़िक्र तेरा सब सफ़्हात में
जिगर का टुकड़ा बिछड़ जाता है
सफ़र-ए-हयात-ए-मुस्त'आर
तजरबात मिले
सफ़र-ए-हयात सबकी एक ही
नज़रिया हर कहीं बदल सकते हैं
बे-वक़्त बिछड़ने वाले
खेल-ए-सफ़र-ए-हयात
तजुर्बात -ए-हयात
वक़्त अपना बेकार जाया कर दिया
तराना-ए-हयात हमने गा लिया
ज़िंदगी को हांकना पड़ेगा उसके हालपर
Edit Comment
×
Modal body..