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"दौलत"
कविता
सुकून वोह बशर मिल गया इक फ़क़ीरी से
*धनदौलत जिंदगीमें सच्चे अहबाब होते हैं*
वो इल्मो-हुनर हमें नहीं आता दर्दे-जिगर जिससे बांटें
थोड़ा-सा सुकूँ चाहिए
सभी दौलते-दर्द से मालामाल हैं
दौलत से परखने लगे हैं
मनसे फ़कीर होना बड़ी बात होती है
मां की बदौलत हम हैं
दर-हक़ीक़त ये है कि मां की बदौलत हम हैं
खुशियों की दौलत आपस में मिलती हैं
आख़री सांस तक काम आएगी
हालाते-हयात आदमी को ना मज़बूर करे
थोड़ी दौलत और जुड़ जाए
धनत्रयोदशी का मिले वरदान बुलन्द हो नाम आपका
अमीरों की न हमें सोहबत चाहिए
मुफ़लिस की सल्तनत में धनदौलत आसपास नहीं आती
सिर्फ़ दुआएं काम आएँगी
जमानेभर के अमीरों का पीर हो गया
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