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"क्यूँ"
कविता
पहल्यां ही बता देंदी
बुरा क्यूँ मानूँ
मुश्किल हो गया
सब उत्तर छोटे पडे़
ना जाने क्यूँ
लुकाछुपी
बँटे आज हम जाने क्यूँ
बजादो बिगुल
क्यों चुप बैठो हो परमपिता ?
इन प्रश्नों की शरशय्या पर
आज भी पीछा करती हैं
ओ प्यारे पपी
एक दीया शहीदों के नाम जलाएँ
मुझे कुछ कहना है
मुझे कुछ कहना है
मुझे कुछ कहना है
ना जाने क्यूँ आज अधूरा
साहस पर मुक्तक
पचपन में मन खोजे बचपन
गज़ल
बँटे आज हम जाने क्यूँ
नव - प्राण हुआ
पर्यावरण सप्ताह विशेष हाईकू
क्या यही जिंदगी है?
कठपुतली
ताजमहल
ताजमहल
इच्छाएँ
बस तू ही तू
परिवर्तन कहीं आस-पास है
शुभ कर्मों में देरी क्यूँ
आ, जिंदगी, पास आ
कैकयी तुम क्यूँ बदनाम हुई?
इच्छाऐं
ज़हरीला इन्सान
कविता की आहट
अब भी समय है "इंदर" सुधर क्यूँ नहीं जाते
सहर-ए-वस्ल जाती क्यूँ है
बे-सबब तकरार क्यूँ करें
वफ़ा करने वाला तन्हा क्यूँ है
लोग सुबह के अख़बार क्यूँ हैं
आप क्यूँ हैं उनके बिना नाखुश
दिल से लोग क्यूँ नहीं निकल पाते
खुद क्यूँ खुद केलिए बुरा सोचो
रंज-ओ-ग़म क्यूँ करें हम
फ़जूल की उम्मीदमें अपनाही तमाशा क्यूंकरें हम
अपना ही तमाशा फिर क्यूँ बनाएं हम
अपना ही तमाशा क्यूँ बनाएं हम
इन्सान क्यूँ इतना परेशान रहता है
खाते-पीते उम्मीद-ए-दिलासा क्यूँ करें हम
कहानी
आखिर क्यूँ ? कब तक ?
क्यूँ बुलाते चाय पर ?
क्रिसमस
आख़िर क्यूँ, कब तक
लेख
मौन
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