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"इतना"
कविता
इतना हँसो कि रोने का वक्त ना मिलो
मौला.....! तू करम करना
इतना हँसें कि रोने का वक्त ना मिले
मनभावन चांद
रोष
ना कर इतना गुमां अपनी कलम पर ऐ शायर
वह आदमी
काजल
पृकृति
पृकृति
सपना
प्यार के भंडार से
मैंने आज बस इतना किया
फिर देख !!!
परिवर्तन कहीं आस-पास है
इतना तो होश है
इतना सा ही तो फ़र्क है
~ नाराज़गी मेरे महबूब की
उम्र हुई तमाम दर्दे -दिल को समझाने में
ज़रूरी है जीते-जी चेहरों पे मुस्कान लाना
काम केलिए निकल जाया करो
इतनाकुछ करने को है
इन्सान क्यूँ इतना परेशान रहता है
नतमस्तक होना पड़े
कहानी
हसरत की हक़ीक़त
हसरत की हक़ीक़त
हसरत की हक़ीक़त
लेख
मैंडी का ढाबा
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