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माँ सीता - Anujeet Iqbal (Sahitya Arpan)

कविताअतुकांत कविता

माँ सीता

  • 114
  • 4 Min Read

दीपावली, मात्र सीता का
अयोध्या आगमन नहीं
वो सारी समसूत्र यात्रा
महल से वनगमन और
धरती का समालंबन
सब रूपक हैं
आत्मा का बाहर से भीतर
व्यवस्थित होने का
सब प्रयाण हैं

अस्तित्व की वेदिका पर
जब साधना की अग्नि
द्योतित होती है
तब अनुरक्ति की समिधा से
सीता प्रकट होती है

सीता हृयदंगम करवा गईं
जिस भेद को संसार में
वही तो कबीर मलंग गाते हैं
खड़े बीच बाज़ार में

सीता के लिए
“जग दर्शन का मेला”
लेकिन श्री राम के नयनों
की तरलता इंगित करे
मनःक्षेप का रेला

आत्मा का आगमन, गमन
और अंत में मूल में समाना
बिल्कुल सदृश्य है
सीता का मोह को
मूल-निकृन्तन करके
अपने उद्गम में समाना

राम तो व्यग्र होकर
प्रस्थानी हो गए अयोध्या के लिए
और सीता धरतीगामी होकर
रास्ता बता गईं मुक्ति के लिए


अनुजीत इकबाल

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Anujeet Iqbal

Anujeet Iqbal 4 years ago

प्रिय नामदेव सर को यह कविता विशेष रूप से पसंद थी। उनको याद करते हुए, उनके चरणों में समर्पित

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