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आदमी - Kavi Praveen Mangliya (Sahitya Arpan)

कवितालयबद्ध कविता

आदमी

  • 75
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आदमी रोता है
अंदर ही अंदर
नही व्यक्त कर पाता
अपनी पीड़ाए सबके सामने

आदमी हँसता है
समाज पर
जिसने उसे बनाया
मजबूत हृदय वाला
जो कभी नही रोता
नही रो पाता वह खूलकर
यदि रोए वह खूलेआम
फटकार दिया जाता उसे
यह कहकर की
मर्द रोया नही करते
होते है मजबूत हृदय वाले

सफलता व असफलता मे
रहना पड़ता है उसे संयमित
सफलता मे खुश होने
पर माना जाता है घमंडी
तथा सफलता मे रोने पर
पाया जाता है कमजोर
शारिरीक रूप से नही
बल्कि मानसिक रूप से

आदमी
रोता है
एकांत में
मन ही मन गुँथता है
अपना जीवन

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