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बुधना - भुवनेश्वर चौरसिया भुनेश (Sahitya Arpan)

कहानीसामाजिक

बुधना

  • 134
  • 5 Min Read

बुधना लघुकथा

"क्यों रे बुधना कैसे आना हुआ?
"पांय लागी मालिक!
"सब कुशल मंगल?
"जी नै मालिक काहै का कुशल मंगल बचबा बीमार है! सरकारी अस्पताल मा दिखाए थे, कोई सुधार नाहीं है। मैंने सोचा, आपको मंत्री बनाने में दिन रात एक कर दिया था! और आप जीत कर मंत्री बन गए। सो घरवाली बोली जाइए न, मालिक सहायता ज़रूर करेंगे तो मैं आशा की किरण अपने साथ लिए आ गया। आप तो चुनाव में हमलोगों से ये नारे भी तो लगबाए थे सबका साथ सबका विकास। तो ऐसी विपत्ति के समय में थोड़ा सा विकास मुझे भी दे देते तो? मेरे बच्चे का इलाज हो जाता!"
"दूर बूरबक! वो तो बस नारा दिया थाI" पानी का गिलास बढ़ाते हुए, "लो पानी पिओ, हाँ इन दिनों आपके जैसे कर्मठ लोगों का साथ पाकर हम जैसे नेताओं का विकास अवश्य हुआ है! जैसे पहले मेरे पिता जी मंत्री थे अब मैं और मेरे बाद मेरा बेटाI"
मंत्री जी को बतकही में उलझाते देख बुधना को लगा कि यहाँ से कोई सहायता नहीं मिलने वाला इसलिए कोई और रास्ता ढूँढते हुए दबे पाँव वहाँ से वापिस निकल गया।

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Ankita Bhargava

Ankita Bhargava 4 years ago

बढ़िया

नेहा शर्मा

नेहा शर्मा 4 years ago

बहुत खूब

दादी की परी
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