कविताअतुकांत कविता
हिंदी हूँ में
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मैं हिंदी हूं
वतन हिंदुस्तान की
गंगा जमुनी संस्कृति की
अविरल धारा हूं मैं
हिंदी हूं मैं
गुजरात को असम से
कश्मीर को कन्याकुमारी से
जोड़ती हूं मैं
हिंदी हूं मैं
ईसाई अरबी फारसी को
वतन में पनाह देती हूँ मैं
हिंदी हूँ मैं
विश्व भ्रमण पर भी मैं जाती हूँ मैं
अपना स्थान बना कर आती हूँ मैं
वतन में ही नहीं
पूरे विश्व में समाई हूँ मैं
हिंदी हूँ मैं
ऊँचे हिमालय की धराओ में हूँ मैं
जन जन की वाणी में हूँ मैं
सिंधु की लहरों में हूँ मै
सिपाही की गोली में हूँ मैं
हिंदी हूँ मैं
बहुत सुंदर रचना। परन्तु ईसाई कोई भाषा नही धर्म है। हां अरबी फारसी भाषा है।