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बदल गए कल और आज - Dr. N. R. Kaswan (Sahitya Arpan)

कवितानज़्म

बदल गए कल और आज

  • 35
  • 2 Min Read

बदल गए मौसम के मिज़ाज
बदल गए हैं कल और आज
लहजा बदल गए हैं "बशर"
लोगबाग बदल गएहैं आवाज़

सरगम के सुर बदल गए हैं
पुराने पड़ गए हैं सब साज
खुदमें मश्ग़ूल हो गया आदमी
बिनकोई काम बिनकोई काज

इन्सान को इन्सान होने पर
हुआ करता था कभी नाज
नहीं रह गया है वोह आदमी
वक़्त की गिरी है ऐसी गाज

© dr. n. r. kaswan "bashar"

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ये ज़िन्दगी के रेले
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यादाश्त भी तो जाती नहीं हमारी
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