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मेरे बाबू जी - Sudhir Kumar (Sahitya Arpan)

कवितालयबद्ध कविता

मेरे बाबू जी

  • 155
  • 12 Min Read

मेरे बाबू जी


घर में पाँव रखते ही
आती है नजर सबसे पहले
सामने वाली दीवार

इस दीवार के बीचो-बीच
लटका है एक फोटो फ्रेम
जिसमें सिमटा है
मेरा पूरा परिवार

मेरा पूरा परिवार ?
हाँ, पूरे परिवार की
मानो संपूर्ण चेतना

मेरी माँ से लेकर
मेरी पोती तक,
इन सबके मन की
साझी संवेदना

हाँ, इस फोटो से
झाँकता रहता है
मेरे बाबूजी का चेहरा
इन आँखों में सिमटा है जैसे
एक समुन्दर गहरा

जिससे उठता ज्वार-भाटा
झलकाता है उनका अद्भुत
सरल-तरल स्वभाव
स्पष्टवादी वाणी,
एक निःस्पृह भाव
उज्ज्वल दर्पण सा सच्चा मन
और एक विलक्षण शुभ चिंतन

जो हमारी गलतियों पर
हमें डाँटता-डपटता
और कभी प्यार की
एक भीनी सी खुशबू बनकर
मन में आकर सिमटता
घर-आँगन के कण-कण से
मानो क्षण-क्षण लिपटता

कभी याद आता है उनका
माँ के साथ अनवरत,शाश्वत,अनुपम
वाग्युद्ध का विविध भारती कार्यक्रम
कभी मद्धम,कभी तेज
जो स्वयं में ही जैसे
रखता था सहेज
मनोविज्ञान के शोध का एक विषय
दाम्पत्य-संबंध का एक अद्भुत परिचय

जानते हो, क्यों ?
मैने अपने जीवन के
इन पचपन सालों में
उन्हें एक दिन के लिए भी
संवादहीन नहीं देखा

और यही तो बन गयी है
स्वाति बूँद सी
मन की सीपी में
मोती बनकर
ढल गई है
हम सबके लिए प्रेरणा की
एक ज्योति पुंज रेखा

हाँ, इसमें सिमटा है
जाने कितना गहरा अहसास
हाँ, विश्व का संपूर्ण प्रेम-इतिहास
नहीं फटक सकता है
इस रिश्ते के आस-पास

इस धागे की मजबूती पर
था उनको गहरा विश्वास
तभी तो वे लड़ते थे
होकर इतने बिंदास

हाँ, उनके व्यक्तित्व का
हर एक पहलू था कुछ खास

और हम सभी उनके
बेटे-बेटी, पोते-पोती, परपोती
बहू और या फिर पतोहू आदि-आदि

हाँ, वे ही तो थे
प्रेम की इस श्रंखला के
सूत्रधार, रचनाकार,
समीक्षक, संरक्षक और पालनहार
प्रेम की इस विलक्षण
सत्यकथा के
इति और आदि

घर की हर एक चेतना
बस उन्हीं से थी पाती
एक शाश्वत प्रेरणा,
हाँ, उन्हीं में सिमटी थी
हम सबकी संवेदना

हाँ, कर नहीं सकता था
कोई उनकी अवहेलना
इसके मूल में था
थोडा़ भय, प्यार और सम्मान
या फिर था, इन सबका एक मिश्रित भाव
हाँ, वही तो छाये हैं हम सब पर
बनकर बूढ़े बरगद की एक धनी छाँव

हाँ, वे एक अभयहस्त थे
जिसकी छत्रछाया में
ये परिवार लगता है
प्यार का एक छोटा सा गाँव
हाँ, बस उसी पतवार से
बेखटके चलती रहती
परिवार की ये सुंदर नाव

हाँ, उनके मन में सिमटा था
थरती सा एक अद्भुत प्यार
हाँ,उनके विचारों में था
नीले अंबर सा विस्तार

जीवन की आपाधापी के मरुस्थल में
वे आज भी एक मरुद्यान हैं
हाँ, उनसे ही आज भी हम सबकी
आन-बान और शान है
हाँ, उनसे ही आज
हम सबकी पहचान है

हाँ, इसीलिए तो मुझको
लगता है यूँ बार-बार
इस फोटो में सिमटा है
उनका पूरा परिवार

द्वारा : सुधीर अधीर

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नेहा शर्मा

नेहा शर्मा 4 years ago

बहुत सुंदर प्यारी सी रचना।

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