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जैसे ग़ज़ल - SHAKTI RAO MANI (Sahitya Arpan)

कवितागजल

जैसे ग़ज़ल

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  • 2 Min Read

समझा दूँ एक अकसना जैसे ग़ज़ल
अश्क गिरते हैं जैसे झरना जैसे ग़ज़ल।

ख्वाब तो ख्वाब में ही‌ टूट जाते हैं
टूटे मोती का हिरा बनना जैसे ग़ज़ल।

उड़ान तो परिंदे कई भरते हैं
गिरकर‌ फिर उड़ान भरना जैसे ग़ज़ल।

फूरसत की मोहब्बत लफ्जों का प्यार
शब्दो का इश्क़ पन्नो पर उतरना जैसे ग़ज़ल।

‘राव’ बिती रैना को यूं कहना जैसे ग़ज़ल
बिती रैना से बनी सोभना जैसे ग़ज़ल।

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नेहा शर्मा

नेहा शर्मा 4 years ago

जी इसमें मीटर और बहर नही है तो यह गजल तो नही परन्तु बहुत सुंदर कविता है। बहुत अच्छा लिखा है आपने

SHAKTI RAO MANI3 years ago

जी यह बे बहर ग़ज़ल है। इसलिए मीटर ध्यान में नहीं है । शुक्रिया आपका

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