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काश! तुम भी समझते - एमके कागदाना (Sahitya Arpan)

कविताअतुकांत कविता

काश! तुम भी समझते

  • 177
  • 3 Min Read

काश! तुम भी समझते

काश !तुम मेरी आंखों का
नमक महसूस कर पाते
जैसे सब्जी में जरा सा
नमक ज्यादा होने पर
फटाक से चिल्ला पड़ते हो।

काश! तुम मेरी फटी बिवाईयों के
दर्द को महसूस कर पाते
जैसे बिवाईयों की फटी
सख्त हुई चमड़ी से तुम्हें
खरोंच आने पर चिल्ला पड़ते हो।

काश! तुम भी समझते
मेरी घूंघट की घुटन को
जैसे तुम्हें सोते देखकर
मैं ओढ़ा देती हूं चद्दर मुहं तक
घुटन से तुम चिल्ला पड़ते हो।

काश! तुम भी समझ पाते
मेरी मनोव्यथा को
जैसे तुम्हे मां से प्यार है
वैसे ही मुझे भी, लेकिन मिलने के
नाम से ही तुम चिल्ला पड़ते हो।

एमके कागदाना
फतेहाबाद हरियाणा

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Ankita Bhargava

Ankita Bhargava 4 years ago

वाह बहुत खूब

नेहा शर्मा

नेहा शर्मा 4 years ago

बहुत सुंदर काश तुम में हज़ारों सवाल छुपे है। सुंदर रचना

Harish Bhatt

Harish Bhatt 4 years ago

shandar

वो चांद आज आना
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