कविताअतुकांत कविता
जिंदगी है अजब पहेली
जितना सुलझाओ
उतना ही उलझ जाती
कितने आए और चले गए
समझा गए दुनिया को
आने वाले का राज
पर अफसोस
न बता पाएं
जाना है कहां
जिंदगी है अजब पहेली
जितना सुलझाओ
उतना ही उलझ जाती
किसने समझा
किसने जाना
होता है क्या बाद में
सच तो यह है कि
जिंदगी है अनमोल
यूं न गवांओ
पल का भरोसा नहीं
न जाने
किस पल चले जाए
अनंत यात्रा पर
कभी न लौटने को
इसलिए
न दुखाओं दिल किसी का
न रूलाओं किसी को
क्योंकि वह भी
उलझा है जिंदगी की पहेली में
क्यों सुलझाने के चक्कर में उलझते जाते हो | जिंदगी है डूबने के लिए क्यों पार पाना चाहते हो | डूबनेवाले ही पार करते हैं ,उलझनेवाले ही सुलझाते हैं | जिंदगी का नियम उल्टा है यहाँ मृत्यु को वरण करने वाले