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छटपटाता रहता है आम इंसान - umesh shukla (Sahitya Arpan)

कवितागीत

छटपटाता रहता है आम इंसान

  • 72
  • 4 Min Read

भारत जैसे देश में
रंगीन दिन की बात
वैसे जैसे कोई छेड़ दे
कोई जख्म अकस्मात
राजधानी दिल्ली अभी
प्रदूषण से रही हैं हांफ
यमुना वर्षों से सरेआम
उगल रही पीड़ा के झाग
सत्तानशीं, हुक्मरानों को
सूझी नहीं युक्तिपूर्ण राह
फिर भला कैसे दिखेगा
आम आदमी में उत्साह
अजब पशोपेश में दिखते
हैं लोकतंत्र के तीनों स्तंभ
देश हित के लिए कड़े फैसले
लेने में भी करते खूब विलंब
सबको सिर्फ अपनी जरूरतों
सुविधाओं का ही रहता ध्यान
ऐसे में हाशिए पर पड़ा बेबस
छटपटाता रहता है आम इंसान
हे ईश्वर मेरे देश के कर्णधारों के
नयनों को दो समुचित ज्योति
ताकि उन्हें दिखाई दे पीड़ाओं
में उलझे आम आदमी की दुर्गति

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