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कवितानज़्म
*खो जाता है आदमी* हुजूमे-शहर में आकर बशर खो जाता है आदमी हों लोग जैसे भीड़ में वैसाही हो जाता है आदमी ©डॉ.एन.आर. कस्वाँ "बशर"/०४/११/२३