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बूढ़ी मां.... - Champa Yadav (Sahitya Arpan)

कवितालयबद्ध कविता

बूढ़ी मां....

  • 276
  • 7 Min Read

बूढ़ी मां....

एक दिन मैंने सड़क पर एक बूढ़ी अम्मा को देखा। जो अपना खाली पेट भरने के लिए हर दिन सड़क के किनारे हारमोनियम लेकर बैठ जाती है।बड़े स्वाभिमान के साथ किसी से कुछ नहीं मांगती......यह देख कर दिल दर्द से भर उठा.....आखिर कोई कैसे अपनी बूढ़ी मां को छोड़ सकता है । जिसे देखकर मेरा मन प्रश्न कर उठा.......

आखिर कोई उस मां को कैसे छोड़ सकता है......
जिसने कई रातों की नींद त्याग दी हो
अपने बेटे को सोलाने के लिए.....

आखिर कोई उस मां को कैसे छोड़ सकता है.....
जिसने खुद धूप में तप कर बेटे को
छाँव मे रखा हो.....

आखिर कोई उस मां को कैसे छोड़ सकता है.....
जिसने खुद निवाला लेने से पहले, अपने बेटे का पेट भरने की सोची हो ,खुद को भूखे रखकर......

आखिर कोई उस मां को कैसे छोड़ सकता है.....
जिसने ना जाने कितनी दुआएं मांगी हो
बेटे के उज्जवल भविष्य के लिए
अपने भविष्य को अंधकार मे रखकर......

आखिर कोई उस मां को कैसे छोड़ सकता है......
जिसने बेटे को रोता देखकर सारी दुनियां से
लड़ पड़ा हो, चाहे खुद कितने आंसू रोई हो......।

आखिर कोई उस मां को कैसे छोड़ सकता है.....
जो बेटे द्वारा ठुकराए जाने के बाद भी
बेटे के लिए ही दुआं मांगी हो......

जिसने यह हरकत की हो वो बेटा तो दूर
इंसान कहलाने के काबिल नहीं है.....
क्या उसका दिल भी है कि पत्थर बन गया है
क्या उसे दर्द भी होता होगा......

आज वह जहां खड़ा है उस मां की बदौलत ही तो खड़ा है ....आखिर कोई भी कैसे भुला सकता है उसके बलिदान को , उसके प्यार को, कोई कैसे ठुकरा सकता है.....

अपनी भगवान स्वरूप मां की ममता को........

@champa यादव
6/9/20

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Kumar Sandeep

Kumar Sandeep 4 years ago

हृदयस्पर्शी

Champa Yadav4 years ago

जी...धन्यवाद

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