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कलयुग है ये - SHAKTI RAO MANI (Sahitya Arpan)

कवितालयबद्ध कविता

कलयुग है ये

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युगो युगो की बात को ना दोहराओ कलियुग है ये
आज सति मे रति वासना मे डुबा युग है ये
प्रथम चरणे इक्यानवे वर्ष का पहला दिन है ये
वैवस्वत् चल रहा है संवत् कलि है ये

कलियुग को प्रलय क्यो बताया महापरिवर्तन है ये
कलि आ गया सच है ये,कल्कि आयेगा निश्चित है ये
काम भूख की तरह संभोग पानी की तरह हो जायेगा
भूख तीन बार,प्यास लगने पर पानी हर बार पिया जायेगा
इज्जत,सच,सम्मान,रिश्ता,भरोसा सिर्फ लिखे शब्द होंगे
ओढ़कर इनकी चादर झूठा जग है ये

ब्रह्मा जगा है तो हम सब सपना है,सोने पर सब नष्ट है ये
ये मै नही कहता करा के देखो विवाह,भूमिपूजन या हवन
मांगलिक कार्यो मे बोला जाने वाला ‘संकल्प मंत्र’ है ये
वैष्णो तु है न मै,विष्णु पुराण का अंतिम परिणाम कलियुग है ये

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