कविताअतुकांत कविता
कुर्सी
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कुर्सी बहुत महान है
अफ़सर से वर्कर तक ,
नेता से अभिनेता तक
प्रत्येक प्राणी इसका गुलाम है
बड़ी कुर्सी के आगे छोटी कुर्सी प्रायः नाकाम है
राजनीतिक भषा में ,भारतीय परिभाषा में
कुर्सी की प्रत्येक टांग से चिपके हैं
करोडों अरमान
लेकिन कुछ सत्ता के बीमार
आदत से लाचार ,
कुर्सी की टांग खींचना है जिनका नैतिक दायित्च ...?
ताकि कुर्सी डगमगा जाये ,
कुर्सी वाला जमीन पर आ जाये
और कैसे भी कुर्सी ,उसके कब्जे में आ जाये ...??
डा योगेन्द्र मणि कौशिक
कोटा