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दार्जिलिंग गैंगटोक यात्रा(3)
दार्जिलिंग की दूसरी सुबह ——-
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दार्जिलिंग से गैंगटोक ——-(3)
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हमारे टूर मैनेजर ने बताया कि सुबह नो बजे तक हम दार्जिलिंग से निकल लेंगे तो ठीक रहेगा क्योंकि कभी कभी ट्रेफ़िक के कारण देर लग सकती है । वैसे दूरी अधिक नहीं है केवल 96 km ही है लेकिन ऊँची नीची पहाड़ियों में घुमावदार रास्ता है इसलिए 5-6 घंटे का समय लग जाता है ।
सिक्किम से हमारे लिए दूसरी कार सुबह साढ़े आठ बजे ही आ गई थी ।कार ड्राइवर पद्म क्षेत्री का फ़ोन आ गया था की तैयार होकर आप होटल से बाहर निकलें तो फ़ोन कर देना क्योंकि ट्रेफ़िक के कारण वहाँ कार खड़ी नहीं कर सकते । हम सवा नो बजे तैयार होकर होटल के बाहर आ गये और अब एक नया सफ़र गैंगटोक ( सिक्किम ) के लिए शुरू हो गया था ।
रास्ते फिर वही टेढ़े मेढ़े लेकिन दार्जिलिंग से बाहर निकलने के बाद सड़क मार्ग काफ़ी अच्छा था । यहाँ की सड़क चौड़ी थी जिससे रास्ता कुछ आसान हो गया था । सड़क मार्ग के साथ साथ तीसता नदी में भी कही कम तो कहीं अधिक पानी भी बह रहा था । ड्राइवर ने बताया कि नदी के दूसरी तरफ़ सिक्किम है और इस तरफ़ पश्चिमी बंगाल है । यह नदी दोनों प्रदेशों की सीमा रेखा है ।बीच में रेलवे सुरंग निर्माण का कार्य भी चल रहा था ।मालूम हुआ कि इसके निर्माण होने पर सिक्किम सीधा रेल मार्ग से भी जुड़ जाएगा और छः घंटे हा सफ़र 45-60 मिनिट में ही पूरा हो जाएगा ।
एक स्थान पर रेंगपो पर हमने पुल से नदी पर की और सिक्किम में हमारा प्रवेश हो गया । यहाँ सिक्किम चेक पोस्ट थी । सिक्किम के विषय में सुना था कि साफ़ सुथरा राज्य है । सीमावर्ती राज्य होने के कारण पुलिस और मिल्ट्री जगह जगह पर तैनात थी ।रास्ते ले लगभग डेढ़ बजे हम रानी फूल पहुँचे तो हमारे ड्राइवर ने बताया की यहाँ अच्छा शाकाहारी भोजन मिल जाएगा । इसलिए हमने वहीं आराम से भोजन किया और लगभग दो बजे वहाँ से रवाना हुए । हालाँकि दूरी केवल 15 km ही थी । लेकिन फिर भी गैंगटोक में प्रवेश होते ही ट्रेफ़िक के कारण होटल पहुँचने में लगभग साढ़े तीन बज गये । यहाँ पहुँचने से पूर्व ही श्रीमती की एक परिचित मित्र अंकिता से अचानक बातचीत में मालूम हुआ की कि वह यहीं है तो वह हमें होटल पर ही मौजूद मिली ।वह यहीं किसी कंपनी में कार्यरत है ।यहाँपहुँच कर आज आराम ही करना था ।दूसरे दिन सुबह नो बजे से फिर यहाँ स्थानीय जगहों पर घूमने का कार्यक्रम था। शाम की कुछ देर बाज़ार में घूमने के बाद हमने भी होटल में आराम करना ही उचित समझा ।
दार्जिलिंग गैंगटोक यात्रा(4)
गैंगटोक की पहली सुबह
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आज सुबह नो बजे का समय था । हम नाश्ता करके तैयार थे । हमारी कार भी समय पर आ गई थी । आज गेम गैंगटोक में ही कुछ दर्शनीय स्थल देखने थे । हनुमान टोक, गणेश टोक, ज़ू,फ्लावर शो ,bakthang waterफॉल, दारुल chorten स्तूप, तिब्बतोलॉजी इंस्टीट्यूट, और ताशी व्यू पॉइंट
सबसे पहले हम हनुमान टोक पर गये । जहाँ पर काफ़ी ऊँचाई पर हनुमान मंदिर था । जिसकी देखभाल कैट रेजिमेंट के जवान करते थे । बडी ही व्यवस्थित , सुथरी व्यवस्था देख कर बहुत अच्छा लगा ।पुजारी भी एक सैनिक ही था । इस जगह का विवरण पढ़ा तो मालूम हुआ कि हनुमान जी संजीवनी लाते समय यहाँ कुछ देर रुके थे ।
वहाँ से गणेश टोक पर गणेश मंदिर में दर्शन किए । गणेश टोक के सामने ही ज़ू था ।जिसमें हम कार से ही अंदर गए लगभग तीन किलोमीटर पर कार पार्किंग कर पैदल ही घूमना था ।आज मौसम बहुत ठंडा था । कुछ बादल भी थे । बताया था कि यहाँ रेड पांडा है लेकिन वो शायद सर्दी के कारण कहीं छिपा था ।अन्य कोई जानवर नहीं था विविध तरह के पेड़ पौधे ज़रूर थे । वैसे चारों ओर हरियाली तो थी । तरह तरह के पक्षी ज़रूर देखने को मिले ।
वहाँ से बायोलॉजिकल और फ्लावर पार्क, bakthang वॉटरफॉल में गये।जिसमें रैग बिरंगें फूल , जड़ी बूटियों वाले औषधीय पेड़ पौधे इस पहाड़ी पर थे । ऊपर बहुत ऊँचाई से झरना गिर रहा था । लेकिन पानी अभी लाभ था । शायद बरसात होने पर ओर अधिक तेज बहता हुआ ।फिर भी नज़ारा बहुत ही सुंदर था । लेकिन बादल बढ़ते जा रहे थे ।
वहाँ से ताशी पॉइंट पर जाकर चारों और का नज़ारा देखने की कोशिश की लेकिन बादल होने के कारण वहाँ से कुछ दिखाई नहीं दे रहा था । फ्लावर शो में फूलों की अनेक प्रजातियाँ थी । तिब्बती इंस्टिट्यूट में बोद्ध धर्म के बारे में जानकारियाँ भी थी । वैसे भी यहाँ बोद्ध अधिक हैं । दारुल चोरटेन स्पूत में भी बोद्ध स्पूत बनी हुई थी । शाम को लगभग तीन बजे हम वापस होटल आ गए ।
हमारे पैकेज में फ़ोटो शूट भी था । जिसकी जानकारी हमें फ़ोटोग्राफ़र के फ़ोन से मिली । शाम को पाँच बजे फ़ोटो शूट के लिए MG marg मार्केट गए वहाँ पर फ़ोटो शूट का भी एक नया ही अनुभव मिला ।क्योंकि हमारे समय तो शादी की फ़ोटो में भी कुछ दूरियाँ बनी ही रहती थी और आस पास कोई फ़ोटो खींचते देख तो नहीं रहा है । इसका भी ध्यान रखते थे ।
आज का कार्यक्रम समाप्ति के पूर्व ही दूसरे दिन सुबह का कार्यक्रम हमें मिल गया ।अब अगले दिन हमें चेंगू लेख, और बाबा मंदिर जाना था । जो समुद्र तल से 14000 ft से भी अधिक ऊँचाई पर है। सर्दी के विशेष कपड़े पहन कर जाने के निर्देश मिले थे ।इतनी ऊँचाई पर जाने में श्रीमती जी कुछ घबरा रही थी लेकिन फिर भी ड्राइवर से रास्ते की जानकारी लेकर संतुष्ट होने पर ही उन्होंने ड्राइवर को सुबह आठ बजे आने की अनुमति दे ही दी ।
दार्जिलिंग गैंगटोक यात्रा(5)
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गैंगटोक दूसरी सुबह
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आज हम सुबह आठ बजे यहाँ की सबसे अधिक ऊँचाई वाली तथा चर्चित जगह बाबा मंदिर और changu lake जाने वाले थे । बाबा मंदिर के पास ही नाथूला पास भी है जिसकी ऊँचाई समुद्र तक से 14140 फिट है ।यह चीन और भारत की सीमा भी है । इसलिए इसका महत्व अधिक है ।
यहाँ के लिए पूर्व में ही सेना से परमिट लेना होता है । हमारे टूर मैनेजर ने पहले ही हमारे फ़ोटो और ID ,मंगा लिए थे । आई डी में यहाँ आधार कार्ड मान्य नहीं है इसलिए हमने ड्राइविंग लाइसेंस की कॉपी और फ़ोटो पहले ही भेज दिया था । जिसके आधार पर ड्राइवर परमिट लेकर सुबह साढ़े आठ बजे होटल आ गया था । उन्होंने बताया कि केवल 11 :00बजे तक ही वहाँ चेक पोस्ट से प्रवेश होगा । उसके बाद प्रवेश बंद हो जाता है ।
बाबा हरभजन सिंह के मंदिर के लिए चेक पोस्ट पार करके जैसे जैसे आगे बढ़े , पहाड़ों की ऊँचाई भी बढ़ने लगी । बीच बीच में बादल बहुत अधिक हो गये थे । कही कहीं तो हमारी कार बादलों चीरती हुई आगे बढ़ रही थी । कभी कभी तो एकदम अंधेरा छा जाता था और आस पास कुछ नहीं दिखाई देता था । हालाँकि अभी सुबह के साढ़े नो ही बजे थे । लेकिन यहाँ के ड्राइवर रस्तों और उनके मिज़ाज से अच्छी तरह परिचित थे । उन्होंने बताया कि वापसी में दोपहर बाद 2-3 बजे बादल और भी अधिक रहेंगे ।
सस्ते में कई जगह चाय , कॉफ़ी बेचने वाली सिक्किम की महिलायें खड़ी थी । हमने भी बीच में गरमागरम कॉफ़ी का आनंद लिया । लेकिन जैसे ही कार से निकले तो बाहर बहुत तेज ठंडी हवायें चल रही थी । वहाँ अधिक देर खड़े रहना मुमकिन नहीं था ।
आगे चलकर हम बाबा मंदिर और नाथूला पास के रस्तों को अलग करने वाले तिराहे पर पहुँचे । वहाँ से एक तरफ़ नत्थूलाल 4 kmतो दूसरी ओर बाबा मंदिर 5 km था।ड्राइवर ने बताया की यदि नाथूला जाना है तो उसके लिए दूसरी बड़ी गाड़ी में जाना होगा ।हम दूसरी गाड़ी में बैठ गये , सोचा जब यहाँ आये ही हैं तो क्यों न नाथूला भी हो कर आयें।दूसरी गाड़ी से निर्धारित स्थान पर उतरे । वहाँ हमें बताया कि ऊपर भारत चीन की सीमा है ।दोनों देशों के अलग अलग सुरक्षा टावर , बिल्डिंग और झंडे नीचे से दिख रहे थे ।
हवा बहुत ही ठंडी चल रही थी लगभग सो फिट की ऊँचाई तक हमें पैदल चढ़ाना था । एक तो ठंडी हवा और साथ ही ऑक्सीजन की कमी के कारण चढ़ाना बड़ा ही टेढ़ा काम था । कुछ कदम चलने पर ही साँस फूलने लगती थी । एक सैनिक से रास्ते में श्रीमती जी ने ऑक्सीजन के लिए कहा तो उसका जवाब था कि चिंता मत करो धीरे धीरे ऊपर जाओ । रुक रुक कर लम्बी साँस लेते रहो मंज़िल तक पंहुच जाओगे । हमने एसा ही किया ।कुछ सीढ़ी चढ़ने और फिर रुक कर अच्छी तरह साँस लेते ।इस तरह ऊपर बॉर्डर पर पहुँच कर लगा जैसे हमने बहुत बड़ी चढ़ाई कर विजय पास की हो ।बीच बीच में श्रीमती जी पूछती रही ,”तबियत ठीक है , कोई दिक़्क़त तो नहीं ।” यह सुन कर लगता जैसे वरिष्ठ नागरिक के साथ युवा केयर टेकर साथ है । हिम्मत करके हम अब यहाँ 14140 फिट की ऊँचाई पर पहुँच ही गए। यहाँ पहुँच कर हम दोनों वरिष्ठ नागरिकों का फ़िटनेस टेस्ट भी हो गया । क्योंकि हमने देखा कि कुछ युवा लोग भी साँस नहीं आ पाने के कारण बीच से ही वापस लौट रहे थे । हालाँकि चार वर्ष पहले हम स्पीती में 14500 फिट की ऊँचाई तक भी जा चुके थे वहाँ विश्व का सबसे ऊँचा पोस्ट ऑफिस था ।
ऊपर पहुँच कर देखा कि एक तरफ़ भारत की बिल्डिंग थी दूसरी तरफ़ चीन की । ऊँचाई पर दोनों देशों के , निगरानी के लिए टावर थे , अपने अपने राष्ट्रीय झंडों के साथ । बीच में कँटीले तार की बाढ़ लगी थी । हालाँकि ये तार नाम मात्र के ही थे कहीं कहीं टूटे हुए भी थे ।कुछ दूरी पर मोटी दीवार भी बनी थी जो कि इस पहाड़ी को दो देशों में विभाजित कर रही थी । तेज ठंडी हवा में खड़े रह पाना बड़ा ही मुश्किल था । सेल्यूट हमारे जवानों को जो की इस तरह के मौसम में भी यहाँ डेट रहते हैं। अभी कुछ दिनों में यहाँ बर्फ गिरनी भी शुरू हो जाएगी तब तो स्तिथि और भी भयावह हो जाती होगी ।
यहाँ से हम वापस नीचे आकर अपनी कार में बैठ कर बाबा हरभजन सिंह मंदिर पहुँच गए । वहाँ पहुँचने से कुछ पहले ही एक बहुत ऊँचा भारत का झंडा दिखाई देने लगा था ।दूसरी ओर एक पहाड़ी पर भोलेनाथ की विशाल मूर्तिऔर पार ही एक झरना जिसका पानी बर्फ में जमा हुआ था ।
बाबा हरभजन मंदिर में किसी भगवान की नहीं बल्कि एक सैनिक की मूर्ति वहाँ थी जो की एक सैनिक के प्रति सम्मान दर्शाता है ।
कहा जाता है कि यह पंजाब का यह सैनिक देश की रक्षा करते हुए किसी नाले में गिर गया था और उसका शरीर नहीं मिला । कुछ दिनों बाद सैनिक हरभजन सिंह किसी के स्वप्न में आये और उनकी स्मृति में मंदिर बनाने के लिए कहाँ तो सैनिकों ने उनकी याद में इसे बनाया । जहाँ पर उनका शयन कक्ष , ऑफिस आदि सब बना है । कहते हैं उनकी यूनिफार्म , बिस्तर आदि रोज़ सही किए जाते हैं। लेकिन कभी कभी उनके बिस्तर पर सलवटें मिलती हैं। मान्यता है कि बाबा हरभजन आज भी देश कि सुरक्षा कर रहे हैं।जिससे यह क्षेत्र सुरक्षित है ।यहाँ का पानी भी बड़ा पवित्र माना जाता है । वहाँ उल्लेख किया गया है की यहाँ के पानी का २१ दिन सेवन से जटिल बीमारी ठीक हो जाती है ।यहाँ भी ठंड थी पानी की भारी बाल्टी में पानी की ऊपरी पर्त पर बर्फ जमी थी ।
अब यहाँ से वापसी में हम चंगू झील पर कुछ देर रुके । चारों और ऊँची ऊँची पहाड़ियों के बीच यह स्वच्छ जल की झील बड़ी ही सुंदर लग रही थी । पानी बहुत ही ठंडा था । झील के किनारे बहुत से याक रंगबिरंगी वस्रों से सजे खड़े थे ।उनके सिंग भी रंग बिरंगे ऊनी वस्त्रों से सजे थे । ये सभी यहाँ आने वाले पर्यटकों को उसपर बैठ कर सैर कराने और फ़ोटो खिंचवाने के लिए थे । हमने भी वहाँ याक पर फ़ोटो खिंचाने और सैर करने का आनंद लिया ।
अब वापस चलने का समय था । हम वापस होटल के लिए रवाना हो गए । रास्ते में एक बार फिर बादलों से सामना हुआ। इन बादलों को चीरते हुए हम लगभग तीन बजे वापस अपने होटल आ गए थे ।
इस तरह हमारे पाँच दिन पुट हुए । अब कल सुबह वापस बागड़ोगरा जाकर वहाँ से दिल्ली की फ़्लाइट थी। इस बीच शाम को पाँच बजे हम यहाँ की आरसी बाजार लाल मार्केट पहुँच गये और कुछ ख़रीदारी भी की जो किभी बाक़ी थी और फिर वापस होटल आ गए । यहाँ भी शाम को पाँच बजे ही अंधेरा हो जाता है और राल आठ बजे से बाज़ार बंद होना शुरू हो जाता है ।
होटल आकर कल सुबह वापस जाने की तैयारी में सभी सामान जमाना शुरू किया । क्योंकि सुबह साढ़े पाँच बजे तक निकलना था । इस तरह दार्जिलिंग - गैंगटोक यात्रा सकुशल समाप्त हुई । अब सुबह हम यहाँ से बहुत सी मीठी, सुखद यादें लेकर वापस रवाना हो जाएँगे । लेकिन यहाँ अंतर्मन में बनी यादें हमेशा साथ रहेंगी। यह यात्रा इसलिए भी यादगार रहेगी क्योंकि वैवाहिक जीवन के 37 वर्षों के बाद पहला अवसर था जब केवल हम दोनों कहीं इतनी लंबी यात्रा पर घूमने के लिए गये थे ।