कवितालयबद्ध कविता
गुरु की महिमा कोई क्या गायें,
जीवन सारा ही जिनका ऋण,
हर रूप में, मानो पाए हैं,
नर रूप में ,हमने नारायण!
हम क्या थे बस कच्ची माटी,
मिले कुशल हाथ कुम्हार के,
हमें रंग रूप, आकार दिया,
कभी हो कठोर,कभी प्यार से,
हम जिस जस के भी पात्र हैं,
हमें जो जितना भी प्राप्त है
सब गुरु चरणों में ही अर्पण।
गुरु की महिमा कोई क्या गायें,
जीवन सारा ही जिनका ऋण!
हम क्या थे कुछ कोरे पन्ने,
हमें क्या थी समझ,संसार की,
क्या नीति नियम,क्या धर्म कर्म,
क्या शिक्षा,क्या व्यापार की,
कैसा चरित्र,क्या आचरण
हर क्षण की व्याख्या व्याकरण,
सुलझाए सैकड़ों समीकरण!
गुरु की महिमा कोई क्या गायें,
जीवन सारा ही जि नका ऋण!
हम क्या थे बस कुछ बीज मात्र,
हमें दी,हवा,मृदा,जल, प्रकाश,
हमें दी उड़ान,दिए ज्ञान पंख,
धरती जड़ों को,उड़ने आकाश,
पालक पोषक,कभी अभिभावक,
कभी मित्र,कभी हुए आलोचक,
करें कृपा जो आमरण
ऐसे गुरु की महिमा क्या गाएं,
जीवन सारा ही जिनका ऋण।