कविताअतुकांत कविता
चाँद.....
--------------
नादान सी भोली सी
साँवली, सलोनी सी,
मासुमियत का नूर उसमें
अधखिली कलि अनजानी सी,
झील सी गहराई नयनों में
मादकता मस्तानी सी II
****
झुल्फें उड़े सावन की घटा ज्यों
चंचल,शोख़ अदा देख लगे हैरानी सी,
रुखसारों का काला तिल बोले
मन मोहे, मनभावन सी,
अंतर्मन में ख्वाब सुनहरे
अधरों पे हँसी वृंदावन सी II
****
तितली सा अल्हड़पन उसमें
देह में कोमलता नरमी और पावन सी,
परियों सी अठखेली उसमें
कपोलों की महक बरसते सावन सी,
कोमलंगों की भाव- भंगिमा
ज्यों प्रीत से मीत मिलावन सी न
****
शिव सी फक्कड़ता है दिल में
लगे गौरां ज्यों दीवानी सी,
अंग अंग में कनक चमकता
छल से निष्काम पाक रूहानी सी,
दीप जले सजदे में रात- दिन
लगे ये अबूझ कहानी सी न
****