कवितागीत
शीर्षक:पल पल तुम्हें पुकारा
पल-पल राह तुम्हारी देखा,पल-पल तुम्हें पुकारा,
घर के बाहर के रस्ते को पल पल सदा निहारा,
दिवस,महीने,बरस बीतते,राह तुम्हारी तकते,
तेरी यादों में पल पल नयनों से झरने झरते,
होली बीती आई दीवाली लेकिन तू न आया,
शायद हम सबकी चिन्ता ने तुझको नहीं सताया,
शेष दिवस हैं कुछ जीवन के इनकी चाह न कोई,
साथ बैठकर कुछ बातों को ही ये आँखें रोई,
नहीं चाहिये हमको तोहफे आई हुई दिवाली में,
हम तो खुश हो जाते हैं तेरी ही खुशहाली में,
अगर चाहता कुछ तू देना पथराई इन आंखों को,
अगर चाहता कुछ तू देना टूट रही इन साँसों को,
तो वादा कर इस बार दिवाली पास मेरे आ जायेगा,
लिपट कर सीने से मेरे कुछ पल को सो जायेगा,
फिर जागेगा गोद में मेरे,पल दो पल बातें होंगीं,
दिन मेरे वो सुन्दर होंगें,सुन्दर वो रातें होंगीं,
बहुत नहीं रोकूँगा तुमको,जान रहा हूँ मजबूरी,
लम्बा सफर तुम्हारा है,बेवजह नहीं है यह दूरी,
फिर भी निकाल कर अल्प समय इन वट वृक्षों को देना,
इन्हें चाहिए समय तुम्हारा और नहीं कुछ लेना,
देख दिवाली आई है क्या तू फिर भी न आयेगा?
क्या पोते को दादा से अब भी न मिलवायेगा,
ऐसा न करना बेटा अब होता नहीं गुजारा,
पल पल राह तुम्हारी देखा,पल पल तुम्हें पुकारा।
अमलेन्दु शुक्ल
सिद्धार्थनगर उ०प्र०
वाह श्रीमान आपने तो मेरे अंतस्तल को झकझोर दिया। आंखों में अश्रु ला दिए😭😭