Help Videos
About Us
Terms and Condition
Privacy Policy
मेरी उल्फ़त, मेरी चाहत - आकाश त्रिपाठी (Sahitya Arpan)

कवितागीत

मेरी उल्फ़त, मेरी चाहत

  • 61
  • 2 Min Read

जिसकी चाहत थी मुझको,
वो आज मिली है।
मन के कण-कण में बन गुल,
वो आज खिली है।

गूंज रही है बनकर स्वर,
वो अंतरमन में।
धड़क रही है बनकर दिल,
दिल की धड़कन में।

मैं पागल हूं उसके ख़ातिर,
अब होश नहीं है।
उससे मिलना रब की चाहत है,
कोई दोष नहीं है।

alankriti-2_1663083219.jpg
user-image
प्रपोजल
image-20150525-32548-gh8cjz_1599421114.jpg
वो चांद आज आना
IMG-20190417-WA0013jpg.0_1604581102.jpg
माँ
IMG_20201102_190343_1604679424.jpg
तन्हाई
logo.jpeg