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तर्पण - kavita Jayant (Sahitya Arpan)

कविताअतुकांत कविता

तर्पण

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तर्पण

आटे की कच्ची लोई से बनाकर छोटे पिंड,
प्रसन्न करने जाते हो तुम अपने पूर्वजों को।
अथवा
एक बार पुनः जाते हो उनसे पाने को मुक्ति,
अप्रसन्न पितरों को करना चाहते हो अनुकूल,
जबकि जाने-अनजाने कर बैठे हो कई भूल।

मोक्ष के द्वार पर खड़ा कर,
दिखाना चाहते हो उन्हें बैकुंठ का मार्ग।

जबकि जीते-जी उनमें
पके आटे की रोटी का मोह व्याप्त था।
कदाचित,
तब तुममें उपेक्षा और प्रताड़ना का वास था।

कैसे न देख पाए तुम उस निरीह तड़पन को,
और आज चले आये सुख हेतु उनके तर्पण को।
कैसे करेंगे वो आज अपने अनुभवों को परोक्ष
कैसे पाएँगे तुम्हारे कच्चे आटे से मोक्ष
कैसे हो सकेगा सम्पूर्ण यह तर्पण,
बिना समर्पण!

कविता जयन्त...

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Ankita Bhargava 4 years ago

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नेहा शर्मा 4 years ago

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