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मंजूर न था - अजय मौर्य ‘बाबू’ (Sahitya Arpan)

कविताअन्य

मंजूर न था

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तुमसे दूर होना मंजूर न था
यूं नाकाम होना मंजूर न था

लड़कर जमाने से चाहा था तुम्हें
फिर बर्बाद होना मंजूर न था

हम जानते हैं कसम तुम्हें भी थी
बदलने का दिखावा मंजूर न था

दरवाजा खोला मेज पर चाय रखी
बुलाने पर भी न आना मंजूर न था

कल आओगी तुम यकीं है मुझे
इश्क पर शक अपने मंजूर न था

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