Help Videos
About Us
Terms and Condition
Privacy Policy
प्रहरी - Yasmeen 1877 (Sahitya Arpan)

कविताअतुकांत कविता

प्रहरी

  • 241
  • 5 Min Read

#01-09-२०२०
दिन-मंगलवार
चित्र आधारित
विधा-पद्य
# प्रहरी
देखो! कैसे फौलादी हैं सीना ताने
दिन और रात के नहीं कोई माने।
जी रहे जी हम बनकर निर्भय
सौगात मिली हमें इनकी बदौलत,
रहते चौकस,हर पल सेवा पर
हों सर्द हवाएँ, बर्फीले थपेड़े हों
याकि हों मरूस्थलीय तूफ़ान,
कठिन से कठिन मुश्किलें भी
नहीं डिगातीं इनके इरादे ।
ये हैं रक्षक प्रहरी कहलाते ......
रहकर सीमाओं पर यह
यूँ ही समय नहीं गवांते,
शत्रु के आक्रमण से पहले ही
हैं स्वयं को तैयार ये करते
टूट पड़ते हैं शत्रु पर
तनिक परवाह नहीं ये
प्राणों की करते, देकर
शिकस्त शत्रु को हैं
फिर ये परचम लहराते।।
ये हैं रक्षक प्रहरी कहलाते........
नहीं राग है -नहीं द्वेष है इनके
हृदय में बसता बस देश है,
नहीं ठिकाना ,नहीं कोई डेरा
कभी सघन वन, कभी मरूभूमि ,
कभी हिमाच्छादित चोटियाँ
बनती हैं इनका बसेरा
आठों पहर करते ये पहरा
लिंगभेद का भाव मिटा अब
चल पड़ी बेटियां भी इसी राह पर
धन्य है ये मातृभूमि ये हैं इसके गहने
हैं धन्य ये,वंदनीय इनका जीवन
ये हैं रक्षक प्रहरी कहलाते।।
डॉ यास्मीन अली।

inbound7021727774686244222_1598958235.jpg
user-image
नेहा शर्मा

नेहा शर्मा 4 years ago

बहुत सुंदर

Yasmeen 18774 years ago

जी धन्यवाद

वो चांद आज आना
IMG-20190417-WA0013jpg.0_1604581102.jpg
तन्हाई
logo.jpeg
प्रपोजल
image-20150525-32548-gh8cjz_1599421114.jpg
माँ
IMG_20201102_190343_1604679424.jpg