कवितालयबद्ध कविता
हम जब जहाँ से
पहला-पहला
कदम उठा के
आगे बढ़ते हैं
एक नयी हिम्मत जुटा के
खुद को पूरा आजमा के
पग-पग डग पे
आगे चलते हैं
वो जगह और वो लमहा,
दोनों ही सबसे बडे़ हैं
पहला कदम,
फिर दूसरा,
दूसरा, फिर तीसरा..
हर कदम हर मायूसी के
कंटकवन को चीरता,
यूँ एक-एक कर
जीवन के पग
आगे बढे़ हैं
हर अरमान ने
परवान चढे़ हैं
हाँ, हम जब
जहाँ पर खड़े हैं
उस मिट्टी के कण-कण में
उस कालखंड के क्षण-क्षण में
उत्कर्ष के वटवृक्ष की
गहरी जड़ें हैं
हाँ, पहला-पहला कदम ही
नवसाहस और नयी पहल का
एक विलक्षण संगम ही
नवचेतना, स्फूर्ति, नव ऊर्जा,
नयी उमंगों, नयी तरंगों का
यह मूल उद्गम ही
हर एक नया प्रयास ही
हर एक नया आगाज़ ही
उम्मीदों के पंखों से
हर एक नया परवाज़ ही
हर दिन रोज नया आता
एक आज ही
जीने का एक अंदाज है
हाँ, क्षणभंगुर से
जीवन के इस
नव अंकुर में
पाता मन का
हर सपना
आकार है
हाँ, बस यही नवसृष्टि की
हरी-भरी सी एक धरती,
इस नवदृष्टि में ही सिमटा,
इस नयी सोच के दामन में ही
बैठा लिपटा
नयी-नयी संभावनाओं का
विस्तृत आकाश है
हर नया कदम नवजीवन है
हर एक उधड़न की सीवन है
हर एक उलझन की सुलझन है
हर एक समस्या का हल है
हाँ, जीवन में सबसे बड़ी,
एक शुभ मुहूरत सी घड़ी
बन माँ की ही मूरत बड़ी
इस धरती के इस तीरथ में
हर अगस्त्य, हर विश्वामित्र
और हर एक भगीरथ ने
नवसंकल्पों की स्याही से,
नवसाहस की लेखनी से
एक नया इतिहास लिखा है
सपनों को सच के
साँचे में ढाल कर
प्राची की नवकिरण बन
कल, आज और कल में शोभित
काल के कपाल पर
निसदिन, पलछिन, नित नूतन
आशा और विश्वास लिखा है
शव के सीने में भी जब-तब
नवप्राणों का नवश्वास लिखा है
हाँ, खुदी की इसी बुलंदी पर,
इंसान की इसी मेहनत पर
और अक्लमंदी पर
नवसृष्टि का इतिहास टिका है
हर एक सृजन की एक धरती,
नवदृष्टि का आकाश टिका है
द्वारा: सुधीर अधीर