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मैं क़लम हूँ - Yasmeen 1877 (Sahitya Arpan)

कविताअतुकांत कविता

मैं क़लम हूँ

  • 322
  • 6 Min Read

#31अगस्त२०२०
दिन-सोमवार
चित्र आधारित
विधा-पद्य

#क़लम
नि:संदेह मैं एक छोटी सी वस्तु हूँ
कोई विशेष रंग नहीं,
न ही विशेष आकार मेरा
सबके काम आती हूँ मैं!
राज दरबारों से लेकर
सड़क-सड़क घूमी हूँ मैं!
जिसने थामा हाथ मुझे
उसकी सदा साथी बनी हूँ मैं!
आओ! परिचय कराऊं अब अपना
मैं क़लम हूँ....
मैं लेखन का सशक्त साधन!
पहले अक्षर पढ़ना सीखा
फिर जब थामा मुझको हाथों में
तब अक्षरों को गढ़ना सीखा ।
है सुंदर अतीत मेरा
तख़्ती से लेकर कम्प्यूटर युग तक
सदा रहा सम्मान मेरा
बड़े-बड़े साहित्यकारों की
मैं बनी संगीनी, हर शिक्षित की
पहली पसंद बनी मैं
हों कितने भी साधन ।।
मन के भावों को जब चिन्हा
काले- काले आखरों में,
होने लगे वह ध्वनित ,
है मुझमें वह सामर्थ्य
बन जाती सबकी सहयोगी
बिन मेरे काम न बने ।
है भले ही नन्हीं मेरी काया ,
मगर सौभाग्य मेरा पाती
सदा शिक्षितों का साया ।
धरते हैं वह जब जेबों में
पा लेती हूँ सानिध्य हृदय का मैं
और जब उकेरते शब्दोंं में
एक इतिहास बन जाती मैं।।
है बस इतनी सी अभिलाषा मेरी
कोई मेरे वजूद को धूमिल न करे
जहाँ चलाए किसी का अहित न करे।।
मैं क़लम हूँ......
डॉ यास्मीन अली।

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नेहा शर्मा

नेहा शर्मा 4 years ago

वाहः बहुत ही सुंदर वर्णन किया आपने कलम का

Yasmeen 18774 years ago

शुक्रिया ने हा जी

वो चांद आज आना
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तन्हाई
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माँ
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