कवितालयबद्ध कविता
कल आज और कल,
वक्त के इस काफिले में,
इनमें सिमटा हर एक पल
जीवन के इस सिलसिले में
कदम बढा़ता हर एक पल
संभावनायें अनगिनत
लाता है खुद में समेटकर
आता-जाता हर एक पल
हर संभावना में
सिमटे हैं
ना जाने कैसे,
कहाँ-कहाँ पर
कितने अवसर
हर एक अवसर को मगर
मिलती नहीं है मनचाही
संभावनाओं की डगर
और संभावनायें अक्सर
ढूँढती ही रह जाती हैं
पल-पल एक अनुकूल पल
और हर पल अपना वज़ूद
ढूँढता ही रह जाता है
खुद से ही खुद का पता
पूछता ही रह जाता है
वक्त के सैलाब में
लहरों के थपेड़े खाता
जूझता ही रह जाता है
अपने वज़ूद को तलाशता सा
लहरों के पहरों में जकडा़
खुद को मानो तराशता सा
जाने कब बह जाता है
जाने क्या-क्या
सह जाता है
तिल-तिल करके
टूटता सा
वक्त की
इस बेरहमी पे
रूठता सा
अगले पल के कानों में
खुद का दर्द कह जाता है
हाँ, दर्द का ही सही,
हर अगले पल पर
पिछले पल का
कुछ ना कुछ तो
बाकी कर्ज रह जाता है
जिंदगी के वास्ते
पल-पल चलने का,
बंदगी के रास्ते
पग-पग ढलने का
कुछ ना कुछ तो
बाकी फर्ज रह जाता है
हाँ, कभी तो एक गागर
भर लेती है खुद में एक
पूरा सागर
और कभी एक सागर
खुद प्यासा रह जाता है
उसका हर अरमान
दबा सा रह जाता है
नदी की बाट जोहता सा
जरा सी आहट पर खुद
प्यार का एक ज्वार बन
तर्जन-गर्जन, उमड़-घुमड़ फिर
खाली हाथ, उल्टे पाँव लौट जाता है
पर जाते-जाते कुछ निशान छोड़ जाता है
साथ छोड़ती राहों से भी
जाने क्यूँ यूँ अपना नाता जोड़ जाता है
हाँ, संभावना को
खोजता सा
हर अवसर,
संभावना संग
आँख मिचौली खेलता सा
एक-एक पल
हर एक पल की हमसफ़र
बनती जाती हर डगर
और इसके हर एक मोड़ पर
खुद को पल-पल मोड़ना ही
जिंदगी है
तनहा-तनहा,
लमहा-लमहा
हर दिन नये एक आज में
सिमटने की एक जगह
वक्त के हर साज पे
थिरकने की एक वजह
जोड़ना ही जिंदगी है
हर अँधेरी रात में
ढूंँढना एक खुशनुमा सी,
एक उजली सी सुबह
हर लमहे के सीने में
धड़कने की एक जगह
खोजना ही जिंदगी है
द्वारा : सुधीर अधीर