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होली - Anujeet Iqbal (Sahitya Arpan)

कविताअतुकांत कविता

होली

  • 225
  • 3 Min Read

होली


होली खेलूंगी उस औघड़ संग
जो भस्म से धूसरित हो
सर्प का जनेऊ पहन
लोटता है मणिकर्णिका घाट पर
और उड़ाता है रक्त का गुलाल
मांस मज्जा का अबीर

माया के झीने धागे से बनी देह
होलिकानल में भीग जाने पर
करती है पारदर्शी नृत्य
उस औघड़ संग
और बचे भस्मकूट में
खिल उठते हैं नवजीवन के पलाश

संसार से कपट कर
हृदयगति का लोभ त्याग कर
लगती हूं औघड़ के कंठ, जीवनांत में
और खेलती हूं होली एकांत में



अनुजीत इकबाल

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Anujeet Iqbal

Anujeet Iqbal 4 years ago

सुंदर कार्य एरोन जी

नेहा शर्मा4 years ago

शुक्रिया अनुजीत जी इसका सारा श्रेय वेब डेवलोपेर्स को जाता है उन सबकी मेहनत है

वो चांद आज आना
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तन्हाई
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प्रपोजल
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माँ
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