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मेरे नयना बरस रहे हैं - Dr. Rajendra Singh Rahi (Sahitya Arpan)

कवितागीत

मेरे नयना बरस रहे हैं

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गीत.. (मेरे नयना...)

मेरे नयना बरस रहे हैं,
रिमझिम-रिमझिम जैसे सावन ।
प्रिय तुम बिन लगता है मुझको,
सूना- सूना सा घर आँगन ।।

घोल रहा मधु बाग पपीहा,
कोयल कू कू गीत सुनाये ।
मधुवन की मोहक शीतलता,
तन- मन में है आग लगाये।।
रास नहीं आ रहा कहीं कुछ,
पास नहीं जो तुम हो साजन।
मेरे नयना बरस रहे हैं,
रिमझिम-रिमझिम जैसे सावन।।

मैं विरहन बैठी घबराती,
कब आवोगे पास हमारे ।
डूब न जाऊँ बीच भँवर में,
पहुँचा दो आ मुझे किनारे ।।
व्यथा नयन की दूर करो आ,
जिससे उर हो जाये पावन ।
मेरे नयना बरस रहे हैं,
रिमझिम-रिमझिम जैसे सावन।।

दोष नहीं दे सकती तुमको,
तुम प्रियतम हो मन के मेरे ।
रात चाँदनी चिढ़ा रही हैं,
कोस रही सखि नित्य सवेरे ।।
समझाती हूँ खुद को लेकिन,
कुछ तुम भी समझो मनभावन।
मेरे नयना बरस रहे हैं,
रिमझिम-रिमझिम जैसे सावन।।

मेरे नयना बरस रहे हैं,
रिमझिम-रिमझिम जैसे सावन ।
प्रिय तुम बिन लगता है मुझको,
सूना- सूना सा घर आँगन ।।

डाॅ. राजेन्द्र सिंह 'राही'
(बस्ती उ. प्र.)

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