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कान्हा - meera tewari (Sahitya Arpan)

कविताअन्य

कान्हा

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मैं तो मौन हूँ कान्हा,
मस्तिष्क में तुम ही तुम हो।
मेरे आनन की मुस्कान हो तुम,
मेरे अधरों का मान हो तुम।
मैं तो——————-।,
कहकर सबसे तुम हो मेरे अवि,
लजाऊँ ध्यानकर तेरी छवि।
मैं तो ————————-।
दिल की हर धड़कन में तेरा नाम बसा,
तुझ से दूर हो जाऊँ न देनी एैसी सजा।
मैं तो —————————————।
तुझको पा नहीं पाई फूलों में तारों में,
तभी खोजती हूँ तुझको, मैं अंगारों में।
मैं तो ————————————।
दर्द जितना दे सको देना ,
कोई शिकवा न करूँगी।
मैं तो ————————————-।
मेरे हाथों को बस थामे रखना,
मैं सारे ग़मों का दरिया पार कर लूँगी।
मैं तो———————————-।
जोड़ा है तुमसे मैंने प्रीत का नाता,
देख लेना मुझको नज़र भर ओ मेरे दाता।
मैं तो ————————————-।
राधा प्रिय है तुमको,यह खूब जानती हूँ,
चुप रहती हूँ ,तुमको मैं पहचानती हूँ।
मैं तो ———————————।
रार नहीं करती मैं राधा के प्रेम से,
मैं जुगनू हूँ ,वह चन्दा है ,मैं दासी वह प्रिया है।
मैं तो ————————————।
तेरी मुरली की धुन सुन पाऊँ,
इतना भाग्य बना देना।
मैं तो —————————————-।
यमुना के तट को अपनी पलकों से बुहारूँ,
इक बार संग मेरे रास रचा जाना कान्हा।
मैं तो —————————————।
“शिंजनी “ कहे राधा की सौगन्ध तुमको,
भवसागर पार करा कर उद्धार कर देना कान्हा।
मैंतो——————————————-।
मीरा शिंजनी

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