Help Videos
About Us
Terms and Condition
Privacy Policy
दर्पण - meera tewari (Sahitya Arpan)

कविताअन्य

दर्पण

  • 133
  • 4 Min Read

दर्पण
दर्पण बड़ी ज़ोर से हँसा
मेरे चेहरे को देखकर ।
किस उम्मीद पर झाँका तुमने,
क्या मैं तेरी तारीफ़ करूँगा।
गए वह जमाने जब तू गुल थी
मैं तुझपे फ़िदा था तू गुलज़ार थी।
हंसी मेरे लबों पे आई कुछ इस तरह,
अरे दीवाने तूने मेरे दिल में न झाँका,
मैं तो दिखाने आई थी कान्हा की कलाकारी।
बहुत रूच-रूच के संवारा मेरे आनन को,
हर लकीरों में मेरे पुण्य दिखाए,
ज़रूरी तो नहीं था कोई इतनी उम्र बिताए।
तुझमें और मुझमें क्या फ़र्क़ है,
तू झूठ नहीं बोलता,मैं सच नहीं छुपाती।
उम्र पर झुर्रियों का एक अलग नशा है,
हर किसी को कहाँ नसीब,नक्श-ए-शिकन है।
गहराती रेखाओं का अर्थ है जीवन में तपना,
कुन्दनबनकर दु:खों की भट्टी से निकलना।
“शिंजनी” कहे दर्पण तेरा भाग्य कहाँ?
जो मुझ सा हो तेरा आकर्षण।
मैंने पाया है इसको जीवन का करके घर्षण।

मीरा शिंजनी

logo.jpeg
user-image
प्रपोजल
image-20150525-32548-gh8cjz_1599421114.jpg
दादी की परी
IMG_20191211_201333_1597932915.JPG
वो चांद आज आना
IMG-20190417-WA0013jpg.0_1604581102.jpg
माँ
IMG_20201102_190343_1604679424.jpg
तन्हाई
logo.jpeg