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आखिर कब तक - राजेश्वरी जोशी (Sahitya Arpan)

कवितालयबद्ध कविता

आखिर कब तक

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  • 3 Min Read

कब तक
कब तक बाँधोगे बाँध,
मन की नदिया के धारों पर.
टूट जायेंगी सभी दीवारें,
नदिया को तो बहना है.

कब तक रोकोगे तुम,
रोशनी को चिनी दीवारों से.
मन के रोशनदान खुलेंगे,
उजालों को तो झरना है.

कब तक दोगे पहरे सपनों पर,
कब तक हाथों से बाँधोगे.
सपनों पर बस नही किसी का,
उनको तो पूरा होना है.

कब तक बाँधोगे जंजीरे,
रूढ़ियों की पाँवों में.
पंख फैलाये मुक्त गगन में,
मुझको तो अब उड़ना है.
स्वरचित
राजेश्वरी जोशी,
उत्तराखंड

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Kamlesh  Vajpeyi

Kamlesh Vajpeyi 2 years ago

बहुत सुन्दर रचना

प्रपोजल
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माँ
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वो चांद आज आना
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तन्हाई
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