कविताअतुकांत कविता
जब बच्चे छोटे होते है।
मन मे कई सवाल पाले होते है
सवालो से घिरा उनका मन
सवाल का जवाब पाने को
सदा उत्साहित रहते है।
एकदिन बिटिया ने बनाई रोटी
थोड़ी टेढ़ी मेढ़ी थी
ना चन्दा जैसी गोल मटोल
ना ही बिंदिया जैसी थी।
फिर हताश होकर
मुझ से बोली-
माँ आपसे पुछू एक सवाल
माँ आपकी पहली रोटी कैसी थी।
जब रोटियां जल जाया करती थी।
क्या नानी आपको डांट लगाती थी?
क्या आप भी गोल गोल चन्दा जैसी
या किसी देश का नक्शा बनाया करती थी।
जब जल जाया करती है उंगलियों
तब क्या नानी प्यार जताती थी?
बताओ ना माँ आपकी पहली रोटी कैसी थी।
बेटी के प्यारे से सवाल पर मैं थोड़ा मुस्काई भावुक होकर गले लगाया
उसको अपनी बनी पहली रोटी के
बारे में बतलाया।
मुझे याद नही मेरी पहली रोटी कैसी थी।
गोल गोल चन्दा सी या टेढ़े-मेढ़े नक्शे सी।
कच्ची थी या पक्की हुई थी,
मोटी थी या जली हुई थी
सच मे कुछ याद नही।
क्योंकि माँ थोड़ी थी ये बताने के लिए जैसे मैं हूं तुझे समझाने के लिए।
कौन था मुझे डांट लगाकर समझाने के लिये।
जब लगती भूख तो खुद ही रोटी बना लेती थी।
गोल बनी या टेढ़ी मेढ़ी ,
कच्ची बनी या पकी हुई
उंगली जले या तपन लगे इतना ध्यान कहा दे पाती थी।
जब फुल जाती थी रोटी तो
खुद ही मुस्कुरा लेती थी।
फूली हुई रोटी देख खुद
ही उत्साह बढ़ा लेती थी।
बस जैसी भी बनी मेरी रोटी
संघर्षों की अग्नि में तपकर बनी थी।
तुम भी कोशिश करती रहना एकदिन
तुम्हारी भी रोटी गोल जरूर बनेगी।
संघर्षों के तपन में जलकर
एक दिन मंजिल जरूर मिलेगी।
ममता गुप्ता
नन्हा बच्चा भी कभी-कभी ऐसा प्रश्न करता है कि हमारे होंठों पर मुस्कान बिखर जाता है। इस काव्य रचना की अंतिम की दो पंक्ति एक प्रेरणादायक सीख दे गई। बेहद अनुपम कृति। हार्दिक शुभकामनाएं??यूं ही आप बेहतरीन लिखती रहें।