कविताअतुकांत कविता
देखो
घनी है रात पर
तारे टिमटिमा रहे हैं
देखो
दिल है उदास
पर तुम संग
हम मुस्करा रहे हैं
सुनो
कल कल करती आवाज़
कोलाहल मन के सारे
जा रहे हैं
महसूस करो
हाथों में मेरे हाथ
हम तुम एक हुए जा रहे हैं
जानो
जिंदगी इक सौगात
सुगन्धित हम हुए जा रहे हैं
मानो
मिलती हैं सतह पे बस संपत्ति
गहराई में उतरके हम सम्पदा पा रहे हैं