कविताअतुकांत कविता
शीर्षक :- मैं पानी हूँ
विधा :- कविता
मैं पानी हूँ
मैं हरपल तुम्हें काम आऊँगा.....!!
ना तो कोई रंग है मेरा, ना मेरा कोई रूप
ना ही कोई संग है मेरे, ना मेरा कोई स्वरूप
चाहे तुम किसी गंदे नाले में बहा दो मुझे
चाहो तो गंगा का पवित्र जल बना लो
पर मैं हर प्यासे का प्यास बुझाऊंगा
मैं पानी हूँ
मैं हरपल तुम्हें काम आऊँगा.....!!
मैं कभी गंगा और कोसी में, विकराल रूप दिखाऊंगा
कभी तुम्हारे गांव के, छोटे नाले में नजर आऊँगा
कभी शहर के सड़कों पर मैं जलजमाव कहलाऊंगा
वादे किए थें जो नेताओं ने, चुनाव प्रचार के समय
मैं उन नेताओं का हर पोल खोल जाऊंगा
मैं पानी हूँ
मैं हरपल तुम्हें काम आऊँगा.....!!
यूं तो मोल नहीं मेरा, मगर मुझ सा कोई अनमोल नहीं
तुम व्यर्थ में बहा दो मुझे या संचित कर भविष्य संवार लो
ना मेरा कोई जाति-धर्म, ना करूं मैं कोई भेदभाव
मैं मंदिर, मस्जिद, चर्च, गुरूद्वारा हर जगह पावन कहलाऊंगा
चाहूं तो मैं रेगिस्तान में भी हरियाली ले आऊँगा
मैं पानी हूँ
मैं हरपल तुम्हें काम आऊँगा.....!!
तुम जिस रूप में ढ़ालो मुझे, मैं उसी रूप में ढ़ल जाऊँगा
मैं पतझड़ में हरियाली लाकर, हर कण-कण हरा कर जाऊँगा
जिस तरह तुम बर्बाद कर रहे मुझे, बाद में तुम पछताओगे
जिस दिन अस्तित्व खत्म हो जाएगा मेरा, फिर मुझे पाने को तुम तरस जाओगे
ढूंढोगे तुम मुझे खुब तड़पकर, मैं फिर कभी नजर नहीं आऊंगा
मैं पानी हूँ
मैं हरपल तुम्हें काम आऊँगा.....!!
ऋषि रंजन
दरभंगा (बिहार)
स्वरचित एंव मौलिक रचना ।