कवितालयबद्ध कविता
स्वरचित कविता-"गृहस्थी "
पाणिग्रहण से शुरू यह सफर-
नए साथियों का बसेगा रे घर,
सुख दुःख भी उनका बराबर हुआ-
गृहस्थी की होगी नई एक सहर.
दर पे सजन के सजे बंदनवार-
स्वागत करेगा सजनिया का द्वार,
शहनाई रोकर भी देगी दुआएं-
मिले हर जनम में प्रियतम का प्यार.
घर के आंगन की झूमेगी बगिया-
पाखी करेंगे मधुरिम कनबतियां,
ससुर,सास,देवर,ननद होंगे आतुर-
चांदी से दिन होंगे,स्वर्णिम सी रतियां.
समय बीत जाएगा हंसते गाते-
होंगी फिर किलकारियों की बातें,
गोद में मचलेगा नन्हा खिलौना-
सुख पाएगा वो सबको थकाते.
ढलेंगे तन-मन में सभी संस्कार-
अमित नेह,सहयोग,सुगढ़आचार,
परिवार सारा थिरकने लगेगा-
आदर्श रचकर सफल होगा प्यार.
गृहस्थी का है यही आधार-
मान,प्रतिष्ठा, सद्व्यवहार,
सभी बड़ों का होवे आदर-
छोटों को भी मिले दुलार.
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स्वरचित-
डा.अंजु लता सिंह
नई दिल्ली