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कविताअतुकांत कविता
तेरी बातो में अब और ना आऊ मैं रूठी बैठी यहाँ, अब ना तोय और रिझाऊ मोसे प्यारी, गैया और ग्वालिन सारी उस पे ये बंसी होठन पे जो धारी दोधारी !!!