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मन - shubham sharma (पाठक) (Sahitya Arpan)

कविताअतुकांत कविता

मन

  • 288
  • 3 Min Read

दिनांक - 29/08/२०२०
विधा - पद्य (अतुकांत कविता)
शीर्षक - मन

ईश की एक अद्भुद-अद्वितीय कृति
नाम जिसका होता है मन ।
कहता हूँ यों कि
मौज में हूँ पर
अंतरंग में
सदैव रोता है
मन।
गति इसकी अज्ञेय ईश-सी
स्वरुप अनंत किन्तु शून्य सा
फिर भी मुझमे,
मेरे संसार में क्यों
सिमटा हुआ होता है
मन?

कभी मुझमें तो कभी मीत में
रास में कभी ,कभी राष्ट् में
लगे भोग में कभी तो
कभी जोग में
न जाने कहां-कहां भटकता है
यह मन ।
किन्तु हो घनिष्ट प्रेम जहाँ,
बस वही शांत
ठहरता है मेरा
मन।
है ईश!
भटकता है यह संसार सारा
किन्तु जब
मनुज
निःकाम निर्विकार हो चूका हो
अंततः
तुझमे ही आकर सिमटता
है मन ।
शुभम शर्मा 'पाठक'

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शिवम राव मणि

शिवम राव मणि 4 years ago

अच्छा लिखा आपने

shubham sharma (पाठक)4 years ago

धन्यवाद् आदरणीय

नेहा शर्मा

नेहा शर्मा 4 years ago

बहुत खूब

shubham sharma (पाठक)4 years ago

बहुत बहुत आभार

वो चांद आज आना
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