कविताअतुकांत कविता
धुरी मेरी
परिधि तुम्हारी
टिक टिक करती
घड़ी ये हमारी
टंग टंग करता हलचल
तूर्यनाद घंटे का |
मिनट तुम्हारे
घंटे के आगाज़ तुम्हारे
पल पल तुम संग चलती
बस तुमसे मिलने को आतुर मेरी जिंदगी |
मैंने अब समझी तेरी गति
रही पड़ी सोई
हुई कितनी ही क्षति |
मील के पत्थर से
स्वजन हमारे |
गणनााए जीवन की घटनाओ
पे हैं चला करती |
टिक टिक करना सब तुम ठीक
लेना घंटो का आनंद |
देखो घड़ी क्या बोल रही...
आश्वासन संबंधों को दे
आस्वादन संबंधों का लेती
सुनती ज्यादा, करती ज्यादा
देखो कैसे कम- कम मधाम बोल रही,
पल पल देखो कैसे तौल रही |
एक सुई
मील के पत्थर पे जैसे
जमके अपने लक्ष्य पे आन खड़ी /
दूजी मंजिल पे देखो कब से जमी पड़ी
देखो कैसे अड़ी पड़ी |
तीजी सुई पल पल
हर पल मिलने को तुमसे आतुर
तत्पर हो चली पड़ी