कवितालयबद्ध कविता
हर एक गोधूलिवेला में
सिर छुपाती सी हर साँझ
रात की पलकों तले
एक सपना बो जाती है
और उसकी गोदी में
दुबककर सो जाती है
और सूरज के इंतजार में
खो जाती है
फिर प्राची से एक नयी किरण
एक नयी आशा सी बन,
हर नयी सुबह,
बन जीने की एक नयी वजह
एक सुनहरे रंग से
कालपट पर
एक नयी तारीख,
आ लिख जाती है
जिंदगी को जीने की,
हर लमहे को
ढूँढ-ढूँढकर
बूँद-बूँद कर पीने की
एक राह नयी
दिख जाती है
हर उतार
और हर एक ठहराव पे
भटकाते से हर दोराहे
और भरमाते से हर पडा़व पे
कुछ नये कदम बढ़कर,
खुद में हर दम
एक नया सा दम भरकर
आगे बढ़ती जाती है
पग-पग पर खुद को तराशकर,
मंजिलों को तलाशकर,
हर सीढी़ के हर नये पादान पर
खुद में एक विश्वास भर,
चढ़ती जाती है
यह जिंदगी है,
चलना ही इसकी बंदगी है,
एक पल भी नहीं रुकती,
कैसा भी तूफान
खडा़ हो राह रोककर,
चलती है सीना ठोककर,
नहीं झुकती,
बस चलती जाती है
हालात के हर साँचे में
पल-पल ढलती जाती है
यह ठान लेती है जब भी,
खुद को यह
पहचान लेती है जब भी,
हर चट्टान के पथरीले सीने से भी
राह निकलती जाती है
द्वारा : सुधीर अधीर